PDF Google Drive Downloader v1.1


Báo lỗi sự cố

Nội dung text गोरखपुर मंडल.pdf

महराजगंज इतिहास 2 अक्टू बर को अस्तित्व में आने वाले महराजगंज जनपद के इतिहास की रुपरेखा पुनगगठन करना एक चुनौिीपूर्ग कार्ग है। प्राचीन भारिीर् सातहत्य में इस क्षेत्र का कम ही उल्लेख हुआ है ऐसी स्तिति में िकग पूर्ग अनुमान का आश्रम लेिे हुए उपलब्ध सातहस्तत्यक एवं पुरािास्तत्वक स्रोिों की सम्यक समीक्षा के उपरान्त इस जनपद का इतिहास तनतवगवाद रूप से प्रिुि कर पाना असंभव है। तिर भी इसके गौरवशाली अिीि के पुनतनगमागर् का प्रर्ास इस लेख का अभीष्ट है। महाकाव्य – कल में र्ह क्षेत्र करपथ के रूप में जाना जािा था, जो कोशल राज्य का एक अंग था। ऐसा प्रिीि होिा है तक इस क्षेत्र पर राज्य करने वाले प्राचीनिम सम्राट इक्ष्वाकु थे, तजनकी राजधानी अर्ोध्या थी। इक्ष्वाकु के उपरान्त इस राजवंश को अनेक छोटे-छोटे राज्यों में बााँट तदर्ा और अपने पुत्र कु श को कु शाविी का राजा बनार्ा, तजसकी आधुतनक समिा कु शीनगर के साथ िातपि की जािी है। राम के संसार त्याग के उपरान्त कु श ने कु शाविी का पररत्याग कर तदर्ा और अर्ोध्या लौट गर्े। बाल्मीतक रामार्र् से ज्ञाि होिा है तक मल्ल उपातधकारी लक्ष्मर् पुत्र चन्द्रके िु ने इसके उपरान्त इस सम्पूर्ग क्षेत्र के शासन सूत्र का संचालन करना प्रारम्भ तकर्ा। अपने मनोहारी वनों, वनस्पतिर्ों एवं धान के लहलहािे खेिों के तलए तवख्याि विगमान महराजगंज जनपद के प्राचीनिम इतिहास की वाितवक रुपरेखा प्रिुि करना अत्यन्त दुष्कर एवं चुनौिीपूर्ग कार्ग है। महाकाव्य काल में र्ह क्षेत्र ‘कारापथ’ के रूप में जाना जािा था, जो कोसल राज्य का एक अंग था। ऐसा प्रिीि होिा है तक इस क्षेत्र पर राज्य करने वाले प्राचीनिम सम्राट अर्ोध्या नरेश इक्ष्वाकु थे, तजन्ोंने सुर्गवंश की िापना की थी। इक्ष्वाकु के उपरान्त इस वंश में अनेक प्रिापी सम्राट हुए। अंिि: सम्राट राम ने अपने जीवन कल में कोसल साम्राज्य को अनेक छोटे-छोटे राज्यों में तवभातजि कर तदर्ा और इस क्षेत्र का शासन अपने पुत्र कु श को सौंपा। वाल्मीतक रामार्र् से ज्ञाि होिा है तक इसके उपरान्त ‘मल्ल’ उपातध धारी लक्ष्मर् पुत्र चंद्रके िु इस सम्पूर्ग क्षेत्र का अतधपति बना। महाभारि में वतर्गि है तक र्ुतधस्तठठर द्वारा सम्पातदि राजसुत्र र्ज्ञ के अवसर पर पूवगविी क्षेत्रों तक तवतजि करने का उत्तरदातर्त्व सौंपा गर्ा था। िलि: भीमसेन ने गोपालक नामक राज्य को जीि तलर्ा। तजसके बासगााँव स्तिि गोपालपुर के साथ स्वीकृ ि तकर्ा जािा है। ऐसा प्रिीि होिा है तक विगमान महराजगंज जनपद का दतक्षर्ी भाग तनतिि रूप से भीमसेन तक इस तवजर् र्ात्रा से प्रभातवि हुआ होगा। महाभारि के र्ुग के उपरान्त इस सम्पूर्ग क्षेत्र में क्ांतिकारी पररविगन हुआ। कोशल राज्य के अधीन अनेक छोटे- छोटे गर्िंत्रात्मक राज्य अतसित्व में आर्े, तजसमें कतपलविु के शाक्ों और रामग्राम के कोतलर्ों का राज्य विगमान महराजगंज जनपद की सीमाओं में भी तविृि था। शाक् एवं कोतलर् गर्राज्य की राजधानी रामग्राम की पहचान की समस्या अब भी उलझी हुई है। डा. राम बली पांडेर् ने रामग्राम को गोरखपुर के समीप स्तिि रामगढ़ िाल से समीकृ ि करने का प्रर्ास तकर्ा है तकन्तु आधुतनक शोधों ने इस समस्या को तन:सार बना तदर्ा है। को तलर् का सम्बंध देवदह नामक नगर से भी था। बौद्धगंथों में भगवान गौिम बुद्ध की मािा महामार्ा, मौसी महाप्रजापति गौिमी एवं पत्नी भद्रा कात्यार्नी (र्शोधरा) को देवदह नगर से ही सम्बतनधि बिार्ा गर्ा है। महराजगंज जनपद के अड्डा बाजार के समीप स्तिि बनतसहा- कला में 88.8 एकड़ भूतम पर एक नगर, तकले एवं िूप के अवशेष उपलब्ध हुए हैं। 1992 में डा. लाल चन्द्र तसंह के नेिृत्व में तकर्े गर्े प्रारंतभक उत्खनन से र्हां टीले के तनचिे िर से उत्तरी कृ ष्णवर्ीर् मृदमाण्ड (एन.बी.पी.) पात्र- परम्परा के अवशेष उपलब्ध हुए हैं गोरखपुर तवश्वतवधालर् के प्राचीन इतिहास तवभाग के पूवग अध्यक्ष डा. सी.डी.चटजी ने देवदह की पहचान बरतसहा कला से ही करने का आग्रह तकर्ा। महराजगंज में तदनांक 27-2-97 को आर्ोतजि देवदह-रामग्राम महोत्सव गोष्ठी में डा. तशवाजी ने भी इसी िल को देवदह से समीकृ ि करने का प्रिाव रखा था। तसंहली गाथाओं में देवदह को लुस्तम्बनी समीप स्तिि बिार्ा गर्ा है। ऐसा प्रिीि होिा है तक देवदह नगर कतपलविु एवं लुस्तम्बनी को तमलाने वाली रेखा में ही पूवग की ओर स्तिि रहा होगा। श्री तवजर् कु मार ने देवदह के जनपद के धैरहरा एं व तत्रलोकपुर में स्तिि होने की संभावना व्यक्त की है। पातल-ग्रन्ों में देवदह के महाराज अंजन का तववरर् प्राप्त होिा है। तजनके दौतहत्र गौिम बुद्ध थे। प्रो. दर्ानाथ तत्रपाठी की मान्यिा है तक महाराज अंजन की गर्भूतम ही कलांिर में तवकृ ि होकर महाराजगंज एवं अंन्ति: महाराजगंज के रूप पररतर्ि हुई। िारसी भाषा का गंज शब्द बाजार, अनाज की मंडी, भंडार अथवा खजाने के अथग में प्रर्ुक्त है जो महाराजा अंजन के खजाने अथवा प्रमुख तवकर् के न्द्र होने के कारर् मुतसलम काल
में गंज शब्द से जुड़ गर्ा। तजसका अतभलेखीर् प्रमार् भी उपलब्ध है। ज्ञािव्य हो तक शोडास के मथुरा पाषार् लेख में गंजवर नामक पदातधकारी का स्पष्ट रूप से उल्लेख तकर्ा गर्ा है। छठी शिाब्दी ई0 में पूवग में अन्य गर्िंत्रों की भांति कोतलर् गर्िंत्र भी एक सुतनतिि भोगौतलक इकाई के रूप में स्तिि था। र्हां का शासन कतिपर् कु लीन नागररकों के तनर्गर्ानुसार संचातलि होिा था। ित्कालीन गर्िंत्रों की शासन प्रर्ाली एवं प्रतक्र्ा से स्पष्टि: प्रमातर्ि होिा है तक जनिंत्र बुद्ध अत्यन्त लोकतप्रर् थे। इसका प्रमार् बौद्ध ग्रंथों में वतर्गि शक्ो एवं कोतलर्ों के बीच रोतहर्ी नदी के जल के बटवारें को लेकर उत्पन्न तववाद को सुलझाने में महात्मा बुद्ध की सतक्र् एवं प्रभावी भूतमका में दशगनीर् है। इस घटना से र्ह भी प्रमातर्ि हो जािा है तक इस क्षेत्र के तनवासी अति प्राचीन काल से ही कृ तष कमग के प्रति जागरूक थे। कु शीनगर के बुद्ध के पररतनवागर् के उपरांि उनके पतवत्र अवशेष का एक भाग प्राप्त करने के उद्देश्य से जनपद के कोतलर्ों का दू ि भी कु शीनगर पहुंचा था। कोतलर्ों ने भगवान बुद्ध क पतवत्र अवशेषों के ऊपर रामग्राम में एक िूप तनतमगि तकर्ा था, तजसका उल्लेख िातहर्ान एवं हवेनसांग ने अपने तववरर्ों में तकर्ा है। तनरार्वली-सूत्र नामक ग्रंथ से ज्ञाि होिा है तक जब कोशल नरेश अजािशत्रु ने वैशाली के तलतचछतवर्ों पर आक्मर् तकर्ा था, उस समर् तलतचछतव गर्प्रमुख चेटक ने अजािशत्रु के तवरूद्व र्ुद्ध करने के तलए अट्ठारह गर्राज्यों का आहवान तकर्ा था। इस संघ में कोतलर् गर्राज्य भी सस्तितलि था। छठी षिाब्दी ई. पूवग के उपरांि राजनीतिक एकीकरर् की जो प्रतक्र्ा प्रारम्भ हुई उसकी चरम पररर्ति अशोक द्वारा कतलंग र्ुद्ध के अनंिर शास्त्र का सदा के तलए तिलांजतल द्वारा हुआ। महराजगंज जनपद का र्ह संपूर्ग क्षेत्र नंदों एवं मौर्ग सम्राटों के अधीन रहा। िातहर्ान एं व हवेनसांग ने सम्राट अशोक के रामग्राम आने एवं उसके द्वारा रामग्राम िूप की धािुओं को तनकालने के प्रर्ास का उल्लेख तकर्ा है। अश्वघोष के द्वारा तलस्तखि बुद्ध चररि (28/66) में वतर्गि है तक समीप के कु ण्ड में तनवास करने वाले एवं िूप की रक्षा करने की नाग की प्राथगना से द्रतवि होकर उसने अपने संकल्प की पररत्याग कर तदर्ा था। गुप्तों के अभ्युदर् के पूवग मगध की सत्ता के पिन के बीच का काल जनपद के ऐतिहातसक घटनाओं के तवषर् में अंध-र्ुग की भांति है। ऐसा प्रिीि होिा है तक कु षार्ों ने इस क्षेत्र पर शासन िातपि करने में सिलिा प्राप्त की थी। कु षार्ों के उपरांि र्ह क्षेत्र गुप्तों की अधीनिा में चला गर्ा। चौथी शिाब्दी ई. के प्रारम्भ में जनपद का अतधकांश क्षेत्र चन्द्रगुप्त प्रथम के राज्य में सतममतलि था, तजसने तलच्छतव राजकु मारी कु मारदेवी के साथ वैवातहक संबंध िातपि करके अपनी शस्तक्त एवं सीमा का अभूिपूवग तविार तकर्ा। चन्द्रगुप्त तद्विीर् तवक्मातदत्य के शासन काल में इस जनपद का क्षेत्र श्राविी मुस्तक्त में सस्तितलि था। चीनी र्ात्री िातहर्ान (400-411 ई.) अपनी िीथग र्ात्राओं के क्म में कतपलविु एवं रामग्राम भी आर्ा था। उसने आस-पास के वनों एवं खण्डहरों का उल्लेख तकर्ा है। गुप्त काल के उपरांि र्ह क्षेत्र मौखररर्ों एवं हषग के आतधपत्य में रहा। हषग के शासना काल मे हवेनसांग (630- ६४४ ई.) ने भी तवप्पतलवन और रामग्राम की र्ात्राएं संपन्न की थी। हषग के उपरांि इस जनपद के कु छ भाग पर भरों का अतधकार हो गर्ा। गोरखपुर के धुररर्ापुर नामक िान से प्राप्त कहल अतभलेख से ज्ञाि होिा है तक 9 वीं शिाब्दी ई. में महराजगंज जनपद का दतक्षर्ी भाग गुजगर प्रतिहार नरेशॉ के श्राविी मुस्तक्त में सस्तितलि था, जहां उनके सामान्त कलचुररर्ों की सत्ता िातपि की। जनश्रुतिर्ों के अनुसार अपने अिुल एश्वर्ाग का अकू ि धन-सम्पदा के तलए तवख्याि थारू राजा मानसेन र्ा मदन तसंह 900-950 गोरखपुर और उसके आस-पास के क्षेत्रों पर शासन करिा था। संभव है तक उसका राज्य महराजगंज जनपद की दतक्षर्ी सीमाओं को भी आवेतष्ठि तकर्े रहा है। गुजगर प्रतिहारों के पिन के उपरांि तत्रपुरी के कलचुरर-वंश के शासक लक्ष्मर् कर्ग (1041-10720) ने इस जनपद के अतधकांश भूभाग को अपने अधीन कर तलर्ा था। तकं िु ऐसा प्रिीि होिा है तक उसका पुत्र एवं उत्तरातधकारी र्श्कर्ग 1073-1120 इस क्षेत्र पर अतधकार जमा तलर्ा। अतभलेस्तखक स्रोिों से ज्ञाि होिा है तक गोतवन्द चन्द्र गाहड़वाल 1114-1154 ई. का राज्य तवकार िक प्रसाररि था। उसके राज्य में महराजगंज जनपद का भी अतधकांश भाग तनतििि: सस्तितलि रहा होगा। गोरखपुर जनपद के मगतदहा (गगहा) एवं धुररर्ापार से प्राप्त गोतवन्द चन्द्र के दो अतभलेख उपर्ुगक्त िथ्य की पुतष्ट है। गोतवन्दचन्द के पौत्र जर्चन्द्र (1170-1194 ई.) की 1194 में मुहिद गोरी द्वारा पराजर् के साथ ही इस क्षेत्र से गाहड़वाल सत्ता का लोप हो गर्ा और िानीर् शस्तक्तर्ों ने शासन-सूत्र अपने हाथों में ले तलर्ा। 12 वीं शिाब्दी ई. के अंतिम चरर् में जब मुहिद गौरी एवं उसके उत्तरातधकारी कु िुबुददीन ऐबक उत्तरी भारि में अपनी नविातपि सत्ता को सुदृढ़ करने में लगे हुए थे इस क्षेत्र पर िानीर् राजपूि वंशों का राज्य िातपि था। चन्द्रसेन श्रीनेि के ज्येष्ठ पुत्र ने सिासी के राजा के रूप में एक बड़े भूभाग पर अतधकार जमार्ा, तजसमें महराजगंज जनपद का भी कु छ भाग सस्तितलि रहा होगा। इसके उपरांि तिरोज शाह िुगलक के समर्
िक इस क्षेत्र पर िानीर् राजपूि राजाओं का प्रभुत्व बना रहा। उदर्तसंह के नेिृत्व में िानीर् राजपूि राजाओं ने गोरखपुर के समीप शाही सेना को उपहार, भेंट एवं सहार्िा प्रदान तकर्ा था। 1394 ई. में महमूद शाह िुगलक तदल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ। उसने मतलक सरवर ख्वाजा जहां को जौनपुर का सूबेदार तनर्ुक्त तकर्ा। तजसने सवगप्रथम इस क्षेत्र को अपने अधीन करके र्हां से कर वसूल तकर्ा। इसके कु छ ही समर् बाद मतलक सरवर ने तदल्ली सल्तनि के तवरूद्ध अपनी स्विंत्रिा की घोषर्ा करिे हुए जौनपुर में शकी-राजवंश की िापना की िथा गोरखपुर के साथ-साथ इस जनपद के अतधकांश भूभाग पर अपना प्रभुत्व िातपि तकर्ा। 1526 ई. में पनीपि के र्ुद्ध में बाबर द्वारा इब्रातहम लोदी के पराजर् के साथ ही भारि में मुगल राजवंश की सत्ता िातपि हुई, तकन्तु न िो बाबर और न ही उसके पुत्र एवं उत्तरातधकारी हुमार्ूं इस क्षेत्र पर अतधकार करने का कोई प्रर्ास कर सके । 1556 ई. में सम्राट अकबर ने इस ओर ध्यान तदर्ा। उसने खान जमान (अली कु ली खां) के तवद्रोहों का दमन करिे हुए इस क्षेत्र पर मुगलों के प्रभुत्व को िातपि करने का प्रर्ास तकर्ा। 1567 ई. में खान जमान की मृत्यु के उपरांि अकबर ने जौनपुर की जागीर मुनीम खां को सौंप दी। मुनीम खां के समर् में इस क्षेत्र में शांति और सुव्यविा िातपि हुई। अकबर ने अपने साम्राज्य का पुनगगठन करिे हुए गोरखपुर क्षेत्र को अवध प्रांि के पांच सरकारों में सस्तितलि तकर्ा गोरखपुर सरकार के अन्तगगि चौबीस महल सतममतलि थे, तजनमें विगमान महराजगंज जनपद में स्तिि तवनार्कपुर और तिलपुर के महल भी थे। र्हां सुर्गवंश राजपूिों का अतधकार था। इन महलों के मुख्यालर्ों पर ईटों से तनतमगि तकलों का तनमागर् सीमा की सुरक्षा हेिु तकर्ा गर्ा था। तवनार्कपुर महल शाही सेना हेिु 400 घोड़े और 3000 पदाति प्रदान करिा था। जबतक तिलपुर महल 100 अश्क एवं 2000 पैदल भेजिा था। तिलपुर महल के अन्तगगि 9006 बीघा जमीन पर कृ तष कार्ग होिा और इसकी मालगुजारी चार लाख दाम तनधागररि की गर्ी थी। तवनार्क महल में कृ तष र्ोग्य भूतम 13858 बीघा थी और उसकी मालगुजारी 6 लाख दाम थी। तिलपुर, तजसकी विगमान समिा तनचलौल के साथ िातपि की जािी है, में स्तिि तकले का उल्लेख अबुल-िजल की अमरकृ ति आइन-ए-अकबरी में भी तकर्ा गर्ा है। अकबर की मृत्यु के बाद 1610 ई. में जहांगीर ने इस क्षेत्र की जागीर अिजल खां को सौंप दी। ित्पिाि र्ह क्षेत्र मुगलों के प्रभुत्व में बना रहा। अठारहवीं शिाब्दी ई. में प्रारम्भ में र्ह क्षेत्र अवध के सूबे के गोरखपुर सरकार का अंग था। इस समर् से लेकर अवध में नवाबी शासन की िापना के समर् िक इस क्षेत्र पर वाितवक प्रभुत्व र्हां के राजपूि राजाओं का था, तजनका स्पष्ट उल्लेख वीन ने अपनी बन्दोबि ररपोटग में तकर्ा है। 9 तसिम्बर 1722 ई. को सआदि खां को अवध का नवाब और गोरखपुर का िौजदार बनार्ा गर्ा। सआदि खां ने गोरखपुर क्षेत्र में स्तिि िानीर् राजाओं की शस्तक्त को कु लचने एवं प्रारम्भ में उसने विगमान महराजगंज क्षेत्र में आिंक मचाने वाले बुटकल घराने के तिलकसेन के तवरूद्व अतभर्ान छे ड़ा, तकन्तु इस कार्ग में उसे पूरी सिलिा नहीं तमल सकी। 19 माचग 1739 को सआदि खां की मृत्यु हो गर्ी िथा सिदरजंग अवध का नवाब बना। उसने एक सेना ित्कालीन गोरखपुर के उत्तरी भाग (विगमान महराजगंज) में भेजा, तजसने बुटवल के तिलकसेन के पुत्र को परातजि करके उससे प्रिुि धनरातश वसूल तकर्ा। इसके बाद दोनों पक्षों में तछटपुट संघषग होिे रहे और अंिि: 20 वषों के लम्बे संघषग के उपरांि बुटकल के राजा ने आत्मसमपगर् कर तदर्ा। 5 अक्टू बर 1754 को सिदरजंग की मृत्यु हुई और उसका पुत्र एवं उत्तरातधकारी शुजाऊददौला अवध का नवाब बना। उसके शासन काल में इस क्षेत्र में सुख-समृस्तद्ध का वािावरर् उत्पन्न हुआ। डा. आशीवागदी लाल श्रीवािव ने उसके शासन काल में इस क्षेत्र में प्रभूि मात्रा में उत्पन्न होने वाले तसनग्ध और सुगंतधि चावल का तवशेष रूप से उल्लेख तकर्ा है। उस समर् अस्सी प्रतिशि आबादी कृ तष कार्ग कर रही थी। 26 जनवरी 1775 को शुजाऊददौला की मृत्यु हुई और उसका पुत्र आसिददौला गददी पर बैठा। उसके शासन काल में िानीर् शासक, बजारों की बढ़िी हुई शस्तक्त को कु चलने में असमथग रहे। तवतभन्न संतधर्ों के द्वारा कं पनी की सेना के प्रर्ोग का व्यर् अवध के ऊपर तनंरिर बढ़ रहा था। िलि: 10 नवम्बर 1801 को नवाब ने कं पनी के कजग से मुतकि हेिु कतिपर् अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ गोरखपुर क्षेत्र को भी कं पनी को दे तदर्ा। इस संतध के िलस्वरूप विगमान महराजगंज का क्षेत्र भी कं पनी के अतधकार में चला गर्ा। इस संपूर्ग क्षेत्र का शासन रूटलेज नामक कलेक्टर को सौंपा गर्ा। तजसने सवगत्र अव्यविा, अशांति एवं तवद्रोह का दशगन तकर्ा। गोरखपुर के सत्तान्तरर् के पूवग ही ित्कालीन अव्यविा का लाभ उठािे हुए गोरखों ने विगमान महराजगंज एवं तसद्धाथगनगर के सीमाविी क्षेत्रों में अपनी स्तिति सुदृढ़ करना प्रारम्भ कर तदर्ा था। तवनार्कपुर एवं तिलपुर परगने के अन्तगगि उनका अतिक्मर् िीव्रगति से हुआ जो विुि: बुटवल के कलेक्टर के साथ इस जनपद में िति अपनी
अवतशष्ट जमीदारी की सुरक्षा हेिु बत्तीस हजार रूपर्े सालाना पर समझौिा तकर्ा था। बाद में अंग्रेजों ने उसे बकार्ा धनराशी न दे पाने के कारर् बन्दी बना तदर्ा। 1805 ई. में गोरखों बुटवल पर अतधकार कर तलर्ा और अंग्रेजों की कै द से छू टने के उपरांि बुटवल नरेश काठमाण्डू में हत्या कर दी। 1806 ई. िक इस क्षेत्र अतधकांश भू-भाग गोरखों के कब्जे में जा चुका था। र्हां िक तक 1810-11 ई. में उन्ोंने गोरखपुर में प्रवेश करिे हुए पाली के पास स्तिि गांवों को अतधकृ ि कर तलर्ा। गोरखों से इस सम्पूर्ग क्षेत्र को मुक्त कराने के तलए मेजर जे.एस.वुड के नेिृत्व में अंग्रेज सेना ने बुटवल पर आक्मर् तकर्ा। वुड संभवि: तनचलौल होिे हुए 3 जनवरी 1815 को बुटवल पहुंचा। बुटवल ने वजीर तसंह के नेिृत्व में गोरखों ने र्ुद्ध की िैर्ारी कर ली थी, तकन्तु अंग्रेजी सेना के पहुंचाने पर गोरखे पहाड़ों में पलातर्ि हो गर्े। वुड उन्ें पराि करने में सिल नहीं हो सका। इसी बीच गोरखों ने तिलपुर पर आक्मर् कर तदर्ा और वुड को उनका सामना करने के तलए तिलपुर लौटना पड़ा। उसकी ढुलमुल नीति के कारर् गोरखे इस संपूर्ग क्षेत्र में धावा मारिे रहे और नागररकों का जीवन कण्टमर् बनािे रहे। र्हां िक तक वुड ने 17 अप्रैल 1815 को बुटवल पर कई घंटे िक गोलाबारी की तकन्तु उसका अपेतक्षि पररर्ाम नहीं तनकला। ित्पिाि कनगल तनकोलस के नेिृत्व में गोरखों से िराई क्षेत्र को मुक्त कराने का तद्विीर् अतभर्ान छे ड़ा गर्ा। कनगल तनकोलस ने गोरखों के ऊपर जो दबाव बनार्ा, उससे 28 नवम्बर 1815 को अंग्रेजों एवं गोरखों के बीच प्रतसद्ध सगौली की संतध हुई तकन्तु बाद में गोरखे संतध की शिों को स्वीकार करने में आनाकानी करने लगे। िलि: आक्टर लोनी के द्वारा तनर्ागर्क रूप से परातजि तकर्े जाने के बाद 4 माचग 1816 को नेपाल-नरेश इस संतध को मान्यिा प्रदान कर दी। इस संतध के िलस्वरूप नेपाल ने िराई क्षेत्र पर अपना अतधकार छोड़ तदर्ा और र्ह क्षेत्र कं पनी के शासन के अन्तगगि सस्तितलि कर तलर्ा गर्ा। 1857 के प्रथम स्विंत्रिा संग्राम ने इस क्षेत्र में नवीन प्रार्-शस्तक्त का संचार तकर्ा। जुलाई 1857 में इस क्षेत्र के जमींदारों के तब्रतटश राज्य के अंि की घोषर्ा की। तनचलौल के राजा रण्डुलसेन ने अंग्रेजों के तवरूद्व आंदोलनकाररर्ों का नेिृत्व तकर्ा। 26 जुलाई को सगौली में तवद्रोह होने पर वतनर्ाडग (गोरखपुर के ित्कालीन जज) के कनगल राउटन को वहां शीघ्र पहुंचने के तलए पत्र तलखा, जो काठमाण्डु से तनचलौल होिे हुए िीन हजार गोरखा सैतनकों के साथ गोरखपुर की ओर बढ़ रहा था, गोरखों के प्रर्ास के बावजूद वतनर्ाडग आंदोलन को पूरी िरह दबाने में असमथग रहा। िलि: उसने गोरखपुर जनपद का प्रशासन सिासी और गोपालपुर के राजा को सौंप तदर्ा। तकन्तु अन्दोलानकिाग बहुि तदन िक इस क्षेत्र को मुक्त नहीं रख सके और अंग्रेजों ने पुन: इस क्षेत्र को अपने पूर्ग तनर्ंत्रर् में ले तलर्ा। तनचलौल के राजा रण्डुलसेन को आंदोलनकाररर्ों का नेिृत्व करने के कारर् न के वल उसको पूवग प्रदत्त राजा की उपातध से वंतचि कर तदर्ा गर्ा अतपिु 1845 ई. में उसे दी गई पेंशन भी छीन ली गई। 1857 ई. के प्रथम स्विंत्रिा आन्दोलन के उपरांि नवम्बर 1858 ई. में रानी तवक्टोररर्ा के घोषर्ा पत्र द्वारा र्ह क्षेत्र भी सीधे तब्रतटश सत्ता के अधीन हो गर्ा। तब्रतटश शासन काल में भी सामान्य जनिा की कतठनाइर्ां दू र नहीं हो सकी। भूतम संबंधी तवतभन्न बन्दोबिों के बावजूद कृ षकों को उनकी भूतम पर कोई अतधकार नहीं तमल सका, जबतक जमीदार मजदू रों एवं कृ षकों के श्रम के शोषर् से संपन्न होिे रहे। तकसान एवं जमीदार के बीच का अंिराल बढ़िा गर्ा। 1920 ई. में गांधी जी के द्वारा असहर्ोग आंदोलन प्रारम्भ तकर्ा तजसका प्रभाव इस क्षेत्र पर भी पड़ा। 8 िरवरी 1921 को गांधी जी गोरखपुर आर्े तजससे र्हां के लोगों में तब्रतटश राज के तवरूद्व संघषग छे ड़ने के तलए उत्साह का संचार हुआ। शराब की दू कानों पर धरना तदर्ा गर्ा िाड़ के वृक्षों को काट डाला गर्ा। तवदेशी कपड़ों का बतहष्कार हुआ और उसकी होली जलार्ी गर्ी। खादी के कपड़े का प्रचार-प्रसार हुआ। 2 अक्टू बर 1922 को इस संपूर्ग क्षेत्र में गांधी जी का जन्म तदन अंन्यि: उत्साह के साथ मनार्ा गर्ा। 1923 ई. में पं. जवाहर लाल नेहरू ने इस क्षेत्र का दौरा तकर्ा, तजसके िलस्वरूप कांग्रेस कमेतटर्ों की िापना हुई। अक्टू बर 1929 में पुन: गांधी जी ने इस क्षेत्र का व्यापक दौरा तकर्ा। 4 अक्टू बर 1929 को घुघली रेलवे स्टेषन पर दस हजार देशभक्तों उनका भव्य स्वागि तकर्ा। 5 अक्टू बर 1929 को गांधी जी ने महराजगंज में एक तवशप जनसभा को संबोतधि तकर्ा। महात्मा गांधी की इस र्ात्रा ने इस क्षेत्र के देशभक्तों में नवीन स्फू तिग का संचार तकर्ा, तजसका प्रभाव 1930-34 िक के सतवनर् अवज्ञा आंदोलनों में देखने को तमला। 1930 ई. के नमक सत्याग्रह के समर् भी इस क्षेत्र ने महत्वपूर्ग भूतमका तनभाई। नमक कानून के तवरूद्व सत्याग्रह, हड़िाल सभा एवं जुलूस का आर्ोजन तकर्ा गर्ा। 1931 ई. में जमीदारों के अत्याचार के तवरूद्व र्हां की जनिा नेतकसान आंदोलन मेंभाग तलर्ा। उसी समर् श्री तशब्बनला सक्सेना नेमहात्मा गांधी के आहवान पर सेण्ट एण्ड ू ज कालेज के प्रवक्ता पद का पररत्याग कर पूवाांचल के तकसान-मजदू रों का नेिृत्व संभाला। 1931 में सक्सेना जी ने

Tài liệu liên quan

x
Báo cáo lỗi download
Nội dung báo cáo



Chất lượng file Download bị lỗi:
Họ tên:
Email:
Bình luận
Trong quá trình tải gặp lỗi, sự cố,.. hoặc có thắc mắc gì vui lòng để lại bình luận dưới đây. Xin cảm ơn.