Nội dung text Chapter 6 भू – आकृतियाँ तथा उनका विकास.pdf
भूगोल अध्याय-6: भू– आकृ तियााँिथा उनका तिकास
(1) 07 भ ू– आक ृ तिय ाँिथ उनक विक स भ ू– आक ृ तिय : ाँ- 1. पथ् ृ वी के धरातल के निर्ााण र्ें अपरदि के कारकों का बहु त बडा योगदाि होता है। अपरदि के इि कारकों र्ें िददयााँपविें, दहर्ािी तथा लहरें आदद आते हैं। 2. ये भ ूतल की चट्टािों को तोडते हैं। उिसे प्राप्त अवसादों को लेकर चलते हैंएवं अन्य कह ं निक्षेपपत कर देते हैं। इि प्रक्रियाओं से धरातल पर कई प्रकार की भ ू– आक ृ नतयों का निर्ााण होता है इि सभी भ ू – आक ृ नतयों को हर् अपरदि एवं निक्षेपण से बिी आक ृ नतयों र्ें पवभाजित कर सकते हैं। भ ू– आक ृ ति विज्ञ न:- भ ू – आक ृ नत पवज्ञाि भ ूतल के इनतहास का अध्ययि है जिसर्ें इसकी आक ृ नत, पदाथों व प्रक्रियाओं जििसे यह भ ूतल बिा है, का अध्ययि क्रकया िाता है। भ ू आक ृ तिय ाँ :- • ज्वालार् ु खी • कै नियि • पहाड • र्ैदाि • द्वीप • झील • िलप्रपात • घाट अपरदिि रूथलरूप:- िददयों द्वारा बिी आक ृ नतयों र्ें अपरदि से बिी आक ृ नतयां हैंv आकार की घाट , गािा, कै नियि, िलप्रपात एवं अधः कनतात पवसपा। तनक्षेवपि स्थलरूप:-
(2) 07 भ ू– आक ृ तिय ाँिथ उनक विक स निक्षेपण से बिी आक ृ नतयों के अन्तगात िद वेददकाएाँ, गोख ुर झील, गक्र ु ं ित िद आती हैं। निी | प्रि दिि जल:- िद द्वारा निर्र्ात स्थलरुप पवकास की पवर्भन्ि अवस्थाएं:- • य ु वावस्था (पहाडी प्रदेश र्ें) • प्रौढावस्था (र्ैदािी प्रदेशों र्ें) • वद्ृ धावस्था (डेल्टा क्षेत्रों र्ें) य ु ि िस्थ :- 1. िददयों की यह अवस्था पहाडी क्षेत्रों र्ें पाई िाती है और इस अवस्था र्ें िददयों की संख्या बहु त कर् होती है। 2. ये िददयााँv- आकार की घादटयााँबिाती हैंजििर्े बाढ के र्ैदाि अि ु पजस्थत या संकरे बाढ र्ैदाि र् ु ख्य िद के साथ साथ पाए िाते हैं। 3. इसर्ें िल पवभािक अत्यधधक चौडे होते हैंजििर्े दलदल और झीलें होती हैं। प्रौढ िस्थ :- 1. िददयों की यह अवस्था र्ैदािी क्षेत्रों र्ें पाई िाती है। इस अवस्था र्ें िददयों र्ें िल की र्ात्रा अधधक होती हैऔर बहु त सार सहायक िददयााँभी आकर इसर्ें र्र्ल िाती हैं। 2. िद घादटयााँv -आकार की होती हैंलेक्रकि गहर होती हैं। इस अवस्था र्ें िद व्यापक होती हैऔर पवस्ततृ होती हैइसर्लए पवस्ततृ बाढ के र्ैदाि पाए िाते हैं। 3. जिसर्े घाट के भीतर ह िद पवसपा बिती हुई बहती है। िद्ृ ध िस्थ :- ये अवस्था डेल्टा क्षेत्रों र्ें पाई िाती हैहैतथा इस अवस्था र्ें, छोट सहायक िददयााँकर् हो िाती हैं। और ढाल धीरे धीरे र्ंद हो िाता है तथा िददयााँ स्वतंत्र रूप से पवस्ततृ बाढ के र्ैदािों र्ें बहती हैऔर िद पवसपा, प्राक ृ नतक तटबंध, गौख ुर झील आदद बिाती हैं।
(3) 07 भ ू– आक ृ तिय ाँिथ उनक विक स अपरदिि स्थलरुप घ दिय ाँ:- 1. घादटयों का प्रारंभ छोट छोट सररताओं से होता है, ये छोट सररताएाँ धीरे धीरे लम्बी और पवस्ततृ अविर्लकाओं के रूप र्ें पवकर्सत हो िाती हैंऔर यह अविर्लकाएं धीरे धीरे और गहर हो िाती हैंतथा चौडी और लम्बी होकर घादटयों का रूप ले लेती हैं। 2. लम्बाई, चौडाई और आक ृ नत के आधार पर इि घादटयों को बांटा गया है – v - आकार घाट , गािा, कै नियि। ग जज:- 1. गािा एक गहर संकर घाट है जिसके दोिों क्रकिारे तेि ढाल वाले होते हैं। 2. गािा की चौडाई इसके तल व ऊपर भाग र्ें कर ब एक बराबर होती है। 3. गािा कठोर चट्टािी क्षेत्रों र्ें बिता है। कै तनयन:- 1. कै नियि के क्रकिारे भी खडी ढाल वाले होते हैंतथा गािा ह की तरह गहरे होते हैं। 2. कै नियि का ऊपर भाग तल क्रक तु लिा र्ें अधधक चौडा होता है। 3. कै नियि का निर्ााण अक्सर अवसाद चट्टािों के क्षैनति स्तरण र्ें पाए िािे से होता है। जल गतिजक :- िद तल र्ें िाँसकर छोटे चट्टािी टु कडे एक ह स्थाि पर गोल – गोल घ ू र्कर गता बिा देते हैंइसे िलगनताका कहते हैं। अिनमिि कुंु ड (PlungePool):- िल प्रपात के तल र्ें एक गहरे तथा बडे िलगनताका का निर्ााण होता हैिो िल के ऊाँ चाई से धगरिे एवं उसर्ें र्शलाखंडो के वत्त ृ ाकार घ ू र्िे से निर्र्ात होते हैं। िलप्रपातों के तल र्ें ऐसे