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फर्रु खाबाद इतिहास • प्राचीन काल फर्रु खाबाद जनपद का इतिहास बहुि ही दू रस्थ प्राचीनकाल का है । काांस्य युग के दौरान कई पूर्ु ऐतिहातसक हतियार और उपकरण यहाां तिले िे। सांतकसा और कम्पिल िें बडी सांख्या िें पत्थर की िूतिुयाां तिलिी हैं। फर्रु खाबाद जनपद िूतिुकला िें िहान पुरािनिा का दार्ा कर सकिा है, इस क्षेत्र िें आयुन बसे हुए िे, जो कु र्रस के करीबी तित्र िे। िहाभारि युद्ध के अांि िक प्राचीन काल से तजले का पारांपररक इतिहास पुराणोां और िहाभारि से प्राप्त होिा है। 'अिार्ासु' ने एक राज्य की स्थापना की, तजसके बाद की राजधानी कान्यकु ब्ज (कन्नौज) िी। जाहनु एक शम्पिशाली राजा िा, क्ोांतक गांगा नदी के नाि पर उन्हें जहनुई के तदया गया िा। िहाभारि काल के दौरान यह क्षेत्र िहान प्रतिष्ठा िें उदय हुआ। काम्पिल्य, दतक्षण पाांचाल की राजधानी िी और द्रौपदी के प्रतसद्ध स्वयांिर्र यहीां हुआ िा। पूरे क्षेत्र को काम्पिल्य कहा जािा िा और तजसका िुख्य शहर कम्पिल हुआ करिा िा, जो दतक्षण पांचाल की राजधानी िी। िहार्ीर और बुद्ध के सिय िें सोलह प्रिुख राज्योां (िहा जनपद) की सूची िें पाांचाल दसर्ें स्थान के रूप िें शातिल िा और यह भी कहा जािा है की इसका क्षेत्र, र्िुिान जनपद बरेली , बदायूां और फर्रु खाबाद िक फै ला हुआ िा । चौिी शिाब्दी बी.सी. के िध्य िें शायद िहापद्म के शासनकाल िें, इस क्षेत्र को िगध के नांद साम्राज्य से जोडा गया िा। अशोक ने सांतकसा िें िें एक अखांड स्तम्भ का तनिाुण तकया िा, जो चीनी यात्री, फा-तहएन एफए-तहयान द्वारा देखा गया िा। ििुरा और कन्नौज एर्ां पांचाल्या क्षेत्र िें बडी सांख्या िें तसक्के पाए गए और तजसको तित्र शासकोां के साि जुडा होना बिाया गया है । तसक्कोां को आििौर पर सी.100 बी.सी. एर्ां सी.200 ए.डी. िाना गया है । ऐसा कहा जािा है की, कन्नौज दू सरी शिाब्दी िें एक प्रतसद्ध और िहत्वपूणु शहर िा, जो की भूगोलशास्त्री पिोलिी (सी.140 ए.डी.) के द्वारा भी कां गोरा या कनोतजया नाि से प्रिातणि तकया गया है फर्रु खाबाद के र्िुिान तजले ने गुप्त लोगोां के स्वणु युग का फल साझा तकया और इसके शाांति और सिृम्पद्ध के तलए बहुि योगदान तदया। मध्यकालीन जयचांद के बेटे हररचांद्र ने 1193 ए.डी. के बाद भी कन्नौज पर कब्जा करना जारी रखा। राज्य पर िुम्पिि र्चुस्व उनके तलए परेशान करने र्ाला िा इसतलए उन्होांने हररश्चांद्र या उनके िुसलिानोां के अतधपति के तलए कोई तर्तशष्ट सांदभु छोडे नहीां।1233-34 िें इल्तुितिश ने कन्नौज गैरीसन को कालीांजार के म्पखलाफ एक अतभयान िें शाही सेनाओां िें शातिल होने का आदेश तदया। 1244 िें, कन्नौज तजले को अपने चाचा जलालुद्दीन पर रख-रखार् के तलए तर्द्रोही अलाउद्दीन िसाउद द्वारा प्रदान तकया गया िा। शाही सेना कन्नौज पर पहुांच गई और बालसांध के तकलेको घेर तलया। यह तकला बहुि िजबूि िा और शाही सेनाएां तर्शाल लूट के साि लौट गईां। गयासुद्दीन बलर्न, तजसके अधीन िब तदल्ली का तसांहासन (1268-87) िा , ने इस क्षेत्र की ओर चढ़ कर पूरे सेना को कई सैन्य क्षेत्रोां िें बाांट तदया। इन जगहोां िें से प्रत्येक िें उसने तकले बनाये एर्ां अफगान सैतनकोां के साि गश्त तकया । बलबान खुद कई िहीनोां के तलए आसपास के क्षेत्र िें बना रहा। त़ियाउद्दीन बारानी तलखिे हैं "इन घटनाओां से साठ साल बीि चुके हैं, लेतकन उसके बाद भी सडकोां को कभी लुटेरोां से िुि हैं ।" 1290 िें जलालुद्दीन तफरो़ि खलजी ने भोजपुर के तकले का दौरा तकया और िाना जािा है तक तकले के तनकट गांगा नदी पर पुल का तनिाुण करर्ाया । 1346-47 िें िुहम्मद िुगलक इस क्षेत्र िें एक और अतभयान चलाया और सरदौडी पहुांचा । 1392 िें, लगभग 45 र्र्षों के अांिराल के बाद, यह क्षेत्र एक बार तफर इस क्षेत्र के शाही प्रातधकारी के तर्र्रद्ध दू सरोां के हािोां िें चला गया। आसपास के इलाकोां के चौहान और सोलांकीयोां की तिलीभगि से , इस क्षेत्र के राजपूि खुले तर्द्रोह िें फां स गए। 1394 िें, इस क्षेत्र िें एक और तर्द्रोह के सांतदग्ध प्रकोप िें, सुल्तान ने ख्वाजा जहान को ितलक-उल- शरीफ का म्पखिाब तदया और उन्हें कन्नौज से लेकर तबहार िक तहांदुस्तान का गर्नुर तनयुि तकया। ितलक-उल- शकु 1399 िें िृत्यु हो गई और उनके दत्तक पुत्र िुबारक शाह तदल्ली िें आभासी शासक बने और कन्नौज पहुांचे। 1414 िें, खै़िर खान (तजसे िैिूर ने अपने प्रभारी के रूप िें भारि िें स्थातपि तदया िा) ने तदल्ली के तसांहासन पर कब्जा कर तलया और सैयद र्ांश के शासन की शुर्रआि की । 1423 िें अपने उत्कर्षु के िुरांि बाद, िुबारक शाह साईांद नेकम्पिल पर राजपूिोांको दबानेकेतलए चढ़ाई की । 1517 िें तसकां दर लोदी की िृत्यु के बाद उसका बेटा, इब्रातहि उसकी गद्दी पर बैठा और सम्राट बना , तफर र्ह कन्नौज गया जहाां कन्नौज के गर्नुर आ़िि हुिायूां सरर्ानी
ने उनका स्वागि तकया, निीजा यह हुआ तक कई बडे अफगानोां के तिलने के बाद कन्नौज िुग़ल शासन की तिलतकयि बन गया । 1527 िें बाबर ने चांदेरी के तर्द्रोही के म्पखलाफ अपनी सेना को भेजा और बाबर ने चांदेरी पर कब्जा कर तलया लेतकन अफगानोां के तलए कन्नौज और शिसाबाद को खो तदया। कन्नौज तर्द्रोतहयोां की तनभुरिा बन गया , तजन्होांने अपने आप को िुसलिानोां और राजपूिोां के तसर पर पाया। उत्तर िें हुिायूूँ के तनरांिर कब्जे ने िहत्वाकाांक्षी शेरशाह सूरी को अपने तहसाब से कायु करने को स्विांत्र कर तदया एर्ां 1537 िें उसने कन्नौज की सरकार को अपने साले को नूर-उददीन िोहम्मद को सौांप तदया। शेरशाह सूरी ने हुिायूां को तदल्ली से अलग िलग कर तदया, और नूर-उददीन िोहम्मद (कन्नौज का गर्नुर) ने हुिायूां के सभी िरफ के दरर्ा़िे बांद कर तदया तजस कारण, हुिायूां नदी पार करके िैनपुरी की िरफ भाग गया और बाद िें 1543 िें भारि छोड कर कां धार चला गया । ऐसा कहा जािा है की तक कन्नौज पर कब्जे के िुरन्त बाद शेरशाह सूरी ने पुराने शहर को नष्ट कर तदया गया िा और जहाां उसने जीि हातसल की िी र्हाूँ उस जगह पर उसने शहर "शेर सूर" का तनिाुण तकया। 1555 िें अफगानोां को सत्ता से बेदखल कर तदया गया और एक बार तफर िुगलशम्पि के रूप िें 12 साल बाद र्ापस लौटे हुिायूां द्वारा सत्ता स्थातपि की गयी, लेतकन 1556 िें जल्द ही उनकी िृत्यु हो गई और उनके बेटे अकबर को उनका उत्तरातधकारी बना तदया गया ।कन्नौज एक िुख्यालय िा तजसिें 30 िहल िे, कम्पिल, सौररख, सकरर्ा, सकिपुर और अकबर के सिय कन्नौज को छोड कर बाकी सभी जगह के पुराने नाि रखे गए िे । 1593 िें कन्नौज को िुजफ्फर हुसैन तिजाु को तदया गया िा, लेतकन बाद िें र्ह एक शराबी सातबि हुए और जल्द ही हटा तदए गए । 1610 िें, जहाांगीर (1605-27) ने कन्नौज को िहान बैरि के पुत्र अब्दुरुहीि को तदया। आधुतनक 1707 िें औरांगजेब की िृत्यु के बाद, तजले का नाि कई बार आया । िुगल साम्राज्य के क्षय के कारण उत्तर भारि िें कई स्विांत्र राज्योां स्थापना हुई, तजसिें फरुखाबाद क्षेत्र ने तजले के बाद के इतिहास िें एक िहत्वपूणु भूतिका तनभाई। 1665 िें िऊ-रशीदाबाद (कायिगांज क्षेत्र का एक छोटा कस्बा) िें एक पठान का बच्चा पैदा हुआ िा, तजनका नाि िोहम्मद खान रखा गया िा। जब िोहम्मद खान 20 साल के िे िब र्ह पठान फ्रीबूटसु के बैंड िें शातिल हुए िे। अपने चचेरे भाई जहाांबर शाह को दबाने के तलए सम्राट फर्रखतशयर के तनिांत्रण पर ,उनके साि सेना िेंशातिल हो गया होने के तलए र्ह उनके साि शातिल हो गए । जब जहाांबर शर परातजि हो गया िब, िोहम्मद खान को पुरस्कृ ि तकया गया और नर्ाब का म्पखिाब से नर्ा़िा गया । उसके बाद िोहम्मद खाां अर्काश लेकर घर र्ापस गए और उन्होांने कायिगांज और िोहम्मदबाद कस्बोां की स्थापना की। काल-का-खेडा नािक एक स्थान पर , उसने एक तकला बनाया, तजसिें से अब के र्ल खांडहर ही रह गए हैं। ऐसा कहा जािा है तक फर्रखतशयर िब क्रोतधि हो गया िा, जब उसने सुना तक िोहम्मद खान ने अपने नाि पर एक शहर की स्थापना की िी। अपने सांरक्षक के क्रोध को कि करने के तलए, नर्ाब ने एक अन्य शहर की स्थापना के इरादे की घोर्षणा की और यह कहा के उसका नाि सम्राट के नाि पर होगा । िोहम्मद खान ने नए शहर के रूप िें फर्रखतशयर नाि पर फर्रु खाबाद की स्थापना 1714 िें की । िोहम्मद खान, अहिद खान के दू सरे बेटे को तर्द्रोह के नेिा के रूप िें चुना गया िा। अहिद खान को अिीर- उल-उिर और शाही र्ेिन िास्टर बनाया गया िा, उसने पानीपि की लडाई िें सम्राट की का खूब साि तदया िा । 1769 िें िराठोां ने तफर से िहादाजी तसांतधया और होलकर के साि तिलकर एपीआई उपम्पस्थति दजु करिे हुए फर्रु खाबाद पर हिला तकया। हातफज रहिि तजसका इलाका इटार्ा िा, उसको उसके क्षेत्र के इलाके िें भी धिकी दी गई, उसने अहिद खान के साि हाि तिलाकर और फिेहगढ़ और फरुखाबाद के बीच िें अपना डेरा डाला। अहिद खान की जुलाई 1771 िें िृत्यु हो गई। शाह आलि कन्नौज िें िे और फर्रु खाबाद क्षेत्र को तफर से शुरू करने का फै सला तकया। 1773 िें, शूजा उद्दौला, िराठोां को क्षेत्र से तनकालने िें सफल रहा और तजले के दतक्षण परगना िें तछबरािउ के अलार्ा काली नदी के दतक्षण िक सभी भाग फर्रु खाबाद िें शातिल िे। 1780 से 1785 िक एक तब्रतटश तनर्ासी को तजले िें तनयुि तकया गया िा, सांभर्िः फिेहगढ़ िें। र्ॉरेन हेम्पस्टांग्स ने फर्रु खाबाद के तनर्ासी को र्ापस लेने का भी र्ादा तकया है, लेतकन ऐसा नहीां तकया। 1857 के शुर्रआिी तदनोां से, तजले िें बहुि उत्साह िा अफर्ाहोां के रूप िें सरकार चाांदी के साि चाांदी के लेतपि र्रपये जारी कर रहा िा। 10 िई को स्विांत्रिा सांग्राि िेरठ िें शुरू हुआ और सिाचार 14 िई को फिेहगढ़ िें पहुांचा । फिेहगढ़ िें ( फर्रु खाबाद से कु छ तकिी दू र ) 10 र्ीां भारिीय इन्फै न्ट्र ी को कनुल म्पिि द्वारा किाांड तकया जा रहा िा ।
01 जून को, अलीगढ़ पुतलस स्टेशन के अतधकारी ने फिेहगढ़ िें जानकारी दी की तक स्विांत्रिा सांग्राि के िहि टर ाांस गांगा क्षेत्र िें तर्द्रोह हुआ है । दो तब्रतटश रेतजिेंट ने गुरसहायगांज और तछबरािउ पर ग्राांड टरांक रोड के रास्ते चढ़ाई की, इन जगहोां पर पुतलस स्टेशनोां को बखाुस्त कर तदया। 18 िारीख को अर्ध स्विांत्रिा सेनातनयोां ने फिेहगढ़ रेतजिेंट लाइनोां िें प्रर्ेश तकया। तसिांबर 1857 िक, तदल्ली तब्रतटश हािोां िें र्ापस आ गया िा, तजसने तर्द्रोश को पूरी िरह बदल तदया िा । तनया़ि िोहम्मद ने कई र्र्षों िक िक्का की यात्रा के दौरान कई र्र्षों िक भटकिे हुए जीर्न का त्याग तकया। 19 र्ीां शिाब्दी के अांि िें फर्रु खाबाद और अन्य शहरोां िें आयु सिाज की गतितर्तधयोां का उदय हुआ।20 र्ीांशिाब्दी िेंदेश िेंराष्टरर्ाद िेंकिी देखी गयी । 1905 के बांगाल आांदोलन के तर्भाजन के तर्रोध िें हुए आांदोलनोां के दौरान, सार्ुजतनक सभा, हिलोां और तर्रोध प्रदशुन हुए । िोहन दास करि चांद गाांधी जी के द्वारा तर्देशी सािानोां के बतहष्कार के आन्दोलन को आगे बढ़ाया गया । अगस्त, 1920 िें िहात्मा गाांधी जी द्वारा शुरू हुआ असहयोग आन्दोलन का भी तजले िें खूब असर हुआ। बैठकोां और हडिालोां का दौर फर्रु खाबाद , फिेहगढ़, कम्पिल , शिसाबाद, कन्नौज, इांदरगढ़ और अन्य शहरोां ख्होब चला । 1928 िें एक पूणु हडिाल आयोतजि तकया गया िा, बडी सांख्या िें लोगोां ने जुलूस िें चलिे हुए, काले झांडे लहरािे हुए और "गो बैक साइिन", "साइिन किीशन गो बैक " शब्दोां के साि बैनर ले कर प्रदशुन तकया। 1930 िें, फर्रु खाबाद िें सतर्नय अर्ज्ञा आांदोलन शुरू हुआ िा। निक का तनिाुण तसकां दरपुर, भोलेपुर, तछबरािउ और कन्नौज िें भी हुआ िा। नर्ांबर 30, 1931 को कानपुर जािे सिय िागु िें , जर्ाहर लाल नेहरू जी के द्वारा बडे पैिाने पर भीड द्वारा प्रत्येक स्टेशन सभी से तिला गया । सुभार्ष चांद्र बोस के द्वारा जनर्री 25, 1940 को फर्रु खाबाद का दौरा तकया गया। अगस्त 15, 1947 को देश तर्देशी शासन से िुि हुआ िा। जनपद आज भी उन लोगोां के बारे िें याद करिा है, तजन्होांने आजादी के सांघर्षु िें भाग तलया िा। कम्पिल िीर्ु क्षेत्र कहा जािा है तक यह स्थान सांि काांतपला द्वारा स्थातपि तकया गया िा। ऐसा कहा जािा है की प्रतसद्ध स्वांयर्र तजसिे तजसिें अजुुन द्रौपदी का हाि जीिने िें सफल रहा र्ह यहीां हुआ िा । शहर िें म्पस्थि रािेश्वरनाि िहादेर् का िांतदर बहुि पुराना है। पारांपररक रूप से प्रभु श्री राि के भाई शत्रुघ्न को िांतदर का श्रेय तदया जािा है। ऐसा कहा जािा है तक र्ो जो तशर् तलांग िूतिु लेकर आये िे उस्सी िूिी को िािा सीिा के द्वारा लांका िें अशोक र्ातटका िें पूजा गया िा । सरोगी सिुदाय ने जैन िीिंकर, नेतिनाि को सितपुि िीन िांतदरोां के तनिाुण की सदस्यिा ली, तजसने जैनोां को पतर्त्र स्थान बना तदया है। संतकसा सांतकसा, तजला िुख्यालय से लगभग 38 तकलोिीटर की दू री पर म्पस्थि, िुख्यालय के दतक्षण-पतश्चि का यह तहस्सा िहात्मा बुद्ध और उसके प्राचीन बौद्ध अर्शेर्षोां के साि सांबांध के तलए जाना जािा है। कन्नौज इतिहास कन्नौज भारि की सबसे प्राचीन जगहोां िें से एक है तजसिें सिृद्ध पुरािाम्पत्वक और साांस्कृ तिक तर्रासि है, इस स्थान का प्राचीन नाि कन्याकु ज्जा या िहोधी है (बाल्मीतक रािायण, िहाभारि और पुराण के अनुसार) बाद िें कन्याकु ज्जा को कन्नौज के रूप िें पररर्तिुि तकया गया िा, जो तक र्िुिान का नाि है । अब कन्नौज के र्िुिान तजले द्वारा कर्र क्षेत्र के प्रारांतभक इतिहास दू र प्राचीन पुरािनिा िें र्ापस चला जािा है। काांस्य युग के दौरान कई पूर्ु ऐतिहातसक हतियार और उपकरण यहाां तिले िे। पत्थर की िूतिुयोां की बडी सांख्या यहाां पाए जािे हैं। कन्नौज िूतिुकला िें िहान पुरािनिा का दार्ा कर सकिे हैं। इस क्षेत्र िें आयुन बसे हुए िे, जो कु र्रस के करीबी तित्र िे। िहाभारि युद्ध के अांि िक प्राचीन काल से तजला का पारांपररक इतिहास पुराणोां और िहाभारि से प्राप्त होिा है ‘अिार्ासु’ ने एक राज्य की स्थापना की, तजसकी राजधानी बाद िें कन्याकु ज्जा (कन्नौज) िी। जहानु एक शम्पिशाली राजा िा क्ोांतक गांगा नदी के नाि पर उन्हें जानेहु के नाि पर रखा गया िा। िहाभारि काल के दौरान यह क्षेत्र िहान प्रतिष्ठा िें उदय हुआ। कां म्पिला दतक्षण पांचला की राजधानी िी और यहाां यह िा तक द्रौपदी के प्रतसद्ध
स्वयांिर्र। पूरे क्षेत्र के तलए प्रयोग तकया जाने र्ाला नाि पांचला, तजसिें से कां म्पितलया (कां तजल) िुख्य शहर िा, िब िक र्ह दतक्षण पांचलाई की राजधानी िी। र्रति के स्थान लाख बहूसी पक्षी अभयारण्य: लाख बहोतस अभयारण्य उत्तर प्रदेश के कन्नौज तजले के लाखबसोही गाांर् के पास म्पस्थि है, 1989 िें स्थातपि यह भारि के बडे पक्षी अभयारण्योां िें से एक है, तजसिें एक तर्शाल झील सतहि 80 र्गु तकलोिीटर और ऊपरी गांगा नहर का एक खांड शातिल है। सर्ेक्षण के िुिातबक भारि िें 97 बडु पररर्ारोां की कु ल सांख्या उपलब्ध है, जबतक 49 पररर्ारोां से सांबांतधि पक्षी भोसी पक्षी अभयारण्य िें हैं। कन्नौज में अन्य प्रतसद्ध स्थान हैं: गौरी शांकर िांतदर, कन्नौज तसटी अन्नपूणाु िांतदर, तिरर्ा, कन्नौज औरैया इतिहास तजले के बारे िें 17 तसिांबर, 1997 को दो िहसीलोां औरैया और तर्धूना को तजला इटार्ा से अलग करके नए तजले औरैया के रूप िें जोडा गया । औरैया िें 7 ब्लाक हैं तजनके नाि हैं,औरैया, अजीििल, तर्धूना, सहार, अछल् दा, भाग् यनगर, एरर्ाकटरा आधुतनक इतिहास रोतहल्लास के िहि १७६० ई. िें अहिद शाह दुराुनी ने भारि पर आक्रिण तकया। उसका पानीपि के िैदान पर िराठोां व्दारा १७६१ िें तर्रोध तकया गया और उसनें िराठोां को एक असाधारण र्रप से हार दी। अन्य िराठा सरदारोां के अलार्ा गोतर्न्द रार् पांतडि ने भी युद्ध िें अपना जीर्न खो तदया। भारि से प्रस्थान पूर्ु दुराुनी प्रिुख ने रोतहल्ला सरदारोां को देश के बडे तहस्सोां िें भेजा। धुांदे खान को तशकोहाबाद, इनायि खाांन (हाफी़ि रहिि खान के बेटे) को इटार्ा तिला जो तक िराठोां के कब्जे िें िा और १७६२ िें एक रोतहल्ला सेना िुल्ला िोहतसन खान के नेिृत्व िें िराठो से सितत्त हतियाने के तलये भेजी गयी िी। इस सेना का इटार्ा शहर के तनकट तकशन रार् र् बाला रार् पांतडि, जो यिुना पार की सुरक्षा के तलये प्रतिबद्ध िे, के व्दारा तर्रोध तकया गया। िोहतसन खान व्दारा इटार्ा के तकले की घेराबन्दी की गयी िी लेतकन तकलेदार ने जल्द ही आत्मसिपुण कर तदया और तजला रोतहल्लास के हािोां िें चला गया। हालाांतक शुर्रआि िें व्यर्साय के र्ल नाि िात्र के ही िे। जिीांदारोां ने इनायि खान को राजस्व का भुगिान करने से इन्कार कर तदया और अपने तकलोां िें अर्ज्ञा का अतधकार सुरतक्षि कर तदया। शेख कु बेर और िुल्ला बा़ि खान के नेिृत्व िें िजबूि सैन्य बल और कु छ िोप खाने रोतहल्लास भेजे गये और बहुि सारे छोटे तकले तिट्टी िें तिल गये लेतकन इिनी बबुरिा िें भी जिुना पार क्षेत्र के किैि के जिीांदार ने इनायि खान के अतधकार का तर्रोध तकया।उसके बाद हातफ़ि रहिि और इनायि खान खुद इटार्ा आये और जिीांदारोां के म्पखलाफ बबुरिापूर्ुक कायुर्ाही को िेज तकया और अन्तिः र्े सम्पि के तलए िैयार हो गये। उसके बाद हातफ़ि रहिि बरेली चले गये और रोतहल्ला चौतकयाूँ तजले िें सुतर्धाजनक स्थानोां पर स्थातपि कर दी गयी। इसी बीच एक नए राजा नातजब खान का तदल्ली िें उदय हुआ। नातजब खान को नातजब-उद् –दौला, आतिर-उल-उिरा, शुजा उद- दौला के नाि से भी जाना जािा है। नबाब र्ातजर ने सफदर जांग िें सफलिा प्राप्त की और दुराुनी व्दारा रोतहल्लास की दी गयी जिीांन के अलार्ा बांगश से अलीगढ़ िक की सितत्त पर कब्जा कर तलया लेतकन फर्रु खाबाद के अफगानोां को र्ातजर की दुश्मनी बदाुश्त नहीां हुई और १७६२ िें उसने फर्रुखाबाद पर हिले िें शातिल होने के तलए नातजब- उद-दौला को िनाया। हिला हातफ़ि रहिि खान की सहायिा से जीिा गया। और एक बार तफर िािले शाम्पन्त से सुलझ गये। १७६६ िें िराठोां ने एक बार तफर िल्हार रार्, जो अपने अर्सर का इन्तजार कर रहा िा, के नेिृत्व िें जिुना पार करके फां फू द पर आक्रिण कर तदया। जहाूँ पर िुहम्मद हसन खान, िोहतसन खान के सबसे बडे पुत्र के नेिृत्व िें

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