Content text 3. बंधुत्व जाति तथा वर्ग आरंभिक समाज (600 ईपू से 600 ईसवी).pdf
इतिहास अध्याय-3: बंधुत्व, जाति िथा वर्ग: आरंभिक समाज
(1) 03 बंधुत्व , जाति िथा वर्ग: आरंभिक समाज महाभारि :- • महाभारत हहन्दओु ंका एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृतत के इततहास वर्गमेंआता है। यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्ममक, पौराणिक, ऐततहाससक और दार्गतनक ग्रंथ हैं। • ववश्व का सबसेलंबा यह साहहत्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हहन्दूधमगके मुख्यतम ग्रंथों मेंसे एक है। इस ग्रन्थ को हहन्दूधमगमेंपंचम वेद माना जाता है। महाभारि की रचना :- • इततहासकारों का मानना हैकक यह वेद व्यास द्वारा णलखा र्या था, लेककन अधधकांर् इततहासकारों का मानना हैकक यह कई लेखकों की रचना है। • इसमेके वल 8800 श्लोक थेबाद मेंछंदों की संख्या बढ़कर 1 लाख हो र्ई है। 1919 मेंएक महत्वपूिग काम र्ुरू हुआ, वीएस सुथंकर के नेतृत्व में” एक प्रससद्ध संस्कृ त ववद्वान ” णजन्होंनेमहाभारत के एक महत्वपूिगसंस्करि को तैयार करनेके णलए समथगन कदया। • महाभारत का पुराना नाम जय संहहता था। महाभारत की रचना 1000 वर्गतक होती रही है (लर्भर् 500 BC) महाभारत सेउस समय के समाज की स्थितत तथा सामाणजक तनयमों के बारेमेंजानकारी धमलती है। महाभारि का समालोचनात्मक संस्करण :- • 1919 मेंसंस्कृ त भार्ा के एक महान ववद्वान (णजनका नाम वी . एस . सुक्ांकर था), के नेतृत्व मेंएक बहुत महत्वकांक्षी पररयोजना की र्ुरुआत हुई। • इस पररयोजना का उद्देश्य था महाभारत नामक महान महाकव्य की ववधभन्न जर्हों सेप्राप्त ववधभन्न पांडुणलपपयों को इकठ्ठा करके एक ककताब का रूप देना। • बहुत सारेबडेबडेववद्वानों नेधमलकर महाभारत का समालोचनात्मक संस्करि (Edition) तैयार करनेकी णजम्मेदारी उठाई। ववद्वानों नेसभी पांडुणलपपयों मेंपाए र्ए श्लोकों की तुलना करने का एक तरीका ढ ूँढ तनकाला, ववद्वानों ने उन श्लोको को चुना जो लर्भर् सभी पांडुणलपपयों मेंणलखेहुए थे।
(2) 03 बंधुत्व , जाति िथा वर्ग: आरंभिक समाज • इन सब का प्रकार्न लर्भर् 13000 पन्नो मेंफै ले अनेक ग्रन्थ खण्डों मेंहुआ। इस पररयोजना को पूरा करनेमें47 साल लर्े। • इस पूरी प्रकिया मेंदो बातेंववर्ेर् रूप सेउभरकर आई ! i. संस्कृ त के कई पाठो के अंर्ो मेंसमानता थी। यह इस बात सेही सपष्ट होता हैकक समूचे उपमहाद्वीप मेंउत्तर मेंकश्मीर और नेपाल सेलेकर दणक्षि मेंके रल और तधमलनाडुतक सभी पांड णलपपयो मेंयह समानता देखनेमेआई। ii. कु छ र्ताब्दीयो के दौरान हुए महाभारत के प्रेर्ि मेंअनेक क्षत्रिय प्रभेद उभरकर सामनेआए। iii. बंधुता एवं वववाह पररवार :- • पररवार समाज की एक महत्वपूिगसंिा थी। • एक ही पररवार के लोर् भोजन धमल बाूँट के करतेहैं। • पररवार के लोर् संसाधनों का प्रयोर् धमल बाूँट कर करतेहैं। • पररवार के लोर् एक साथ रहतेथे। • पररवार के लोर् एक साथ धमलकर पूजा पाठ करतेहैं। • कु छ समाजों मेंचचेरेऔर मौसेरेभाई बहनों को भी खून का ररश्ता माना जाता। पपिव ृ न्शिकिा :- • पपतृवंणर्क सेअधभप्राय की पपता की मृिुके बाद उसके संसाधनों का हकदार उसका पुि का है, इसेपपतृवंणर्क व्यविा कहतेहैं। • परन्तुराजा की म्रिुके बाद उसका ससिंहासन उसके पुि को सौप कदया जाता है। तथा कभी पुि न होनेपर सम्बधी भाई को उत्तराधधकारी बनाया जाता था। पववाह के तनयम :- • ब्राह्मिों नेसमाज के णलए एक ववस्तृत आचारसंहहता तैयार की है।