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Content text अयोध्या मंडल.pdf


जिला बाराबंकी को दाररयाबाद के नाम से िाना िाता था, जिसका मुख्यालय दाररयाबाद शहर था, जिसे मोहम्मद शाह शाररकी की सेना के एक अजधकारी दररआब खां द्वारा स्थाजपत जकया गया था। यह 1858 ई. तक जिला मुख्यालय बना रहा। 1859 ई. में जिला मुख्यालय को नर्ाबगंि में स्थानांतररत कर जदया गया था जिसे अब बाराबंकी कहा िाता है।जिले के जर्स्तार के जलये अंग्रेिों द्वारा, तब दररयाबाद जिले में कु सी को जिला लखनऊ और हैदरगढ़ को जिला रायबरेली से िोडा गया था। पररिाि वृक्ष पांडर् की मां कुं ती के नाम पर रखा गया, जकन्तूर गांर्, जिला मुख्यालय बाराबंकी सेलगभग 38 जकलोमीटर पूर्ी जदशा में है। इस िगह के आसपास प्राचीन मंजदर और उनके अर्शेि हैं। यहां कुं ती द्वारा स्थाजपत मंजदर के पास, एक जर्शेि पेड है जिसे ‘पररिात’ कहा िाता है। इस पेड के बारे में कई बातें प्रचजलत हैं जिनको िनता की स्वीकृ जत प्राप्त है। जिनमें से यह है, जक अिुजन इस पेड को स्वगज से लाये थे और कुं ती इसके फू लों से जशर्िी का अजभिेक करती थी। दू सरी बात यह है, जक भगर्ान कृ ष्ण अपनी प्यारी रानी सत्यभामा के जलए इस र्ृक्ष को लाये थे। ऐजतहाजसक रूप से, यद्यजप इन बातों को कोई माने या न माने, लेजकन यह सत्य है जक यह र्ृक्ष एक बहुत प्राचीन पृष्ठभूजम से है। पररिात के बारे में हररर्ंश पुराण मेंजनम्नजलस्लखत कहा गया है। पररिात एक प्रकार का कल्पर्ृक्ष है, कहा िाता है जक यह के र्ल स्वगज में होता है। िो कोई इस पेड के नीचे मनोकामना करता है, र्ह िरूर पूरी होती है। धाजमजक और प्राचीन साजहत्य में, हमें कल्पर्ृक्ष के कई संदभज जमलते हैं, लेजकन के र्ल जकन्तुर (बाराबंकी) को छोडकर इसके अस्लस्तत्व के प्रमाण का जर्र्रण जर्श्व में कहीं और नहीं जमलता। जिससे जकन्तूर के इस अनोखे पररिात र्ृक्ष का जर्श्व में जर्शेि स्थान है। र्नस्पजत जर्ज्ञान के संदभज में, पररिात को ‘ऐडानसोजनया जडजिटाटा’ के नाम से िाना िाता है, तथा इसे एक जर्शेि श्रेणी में रखा गया है, क्ोंजक यह अपने फल या उसके बीि का उत्पादन नहीं करता है, और न ही इसकी शाखा की कलम से एक दू सरा पररिात र्ृक्ष पुन: उत्पन्न जकया िा सकता है। र्नस्पजतशास्लियों के अनुसार यह एक यूजनसेक्स पुरुि र्ृक्ष है, और ऐसा कोई पेड और कहीं नहीं जमला है। जनचले जहस्से में इस र्ृक्ष की पजियां, हाथ की उंगजलयों की तरह पांच युस्लियां र्ाली हैं, िबजक र्ृक्ष के ऊपरी जहस्से पर यह सात युस्लियां र्ाली होती हैंंं । इसका फू ल बहुत खूबसूरत और सफे द रंग का होता है, और सूखने पर सोने के रंग का हो िाता है। इसके फू ल में पांच पंखुडी हैं। इस पेड पर बेहद कम बार बहुत कम संख्या में फू ल स्लखलता है, लेजकन िब यह होता है, र्ह ‘गंगा दशहरा’ के बाद ही होता है, इसकी सुगंध दू र-दू र तक फै लती है। इस पेड की आयु 1000 से 5000 र्िज तक की मानी िाती है। इस पेड के तने की पररजध लगभग 50 फीट और ऊं चाई लगभग 45 फीट है। एक और लोकजप्रय बात िो प्रचजलत है जक, इसकी शाखाएं टू टती या सूखती नहीं, जकं तु र्ह मूल तने में जसकु डती है और गायब हो िाती हैं। आसपास के लोग इसे अपना संरक्षक और इसका ऋणी मानते हैं, अतः र्े इसकी पजियों और फू लों की रक्षा हर कीमत पर करते हैं। स्थानीय लोग इसे बहुत उच्च सम्मान देते हैं, इस के अलार्ा बडी संख्या में पयजटक इस अजद्वतीय र्ृक्ष को देखने के जलए आते हैं। देवा शरीफ यह हािी र्ाररस अली शाह की िन्मस्थली है, जिन्ोंने मानर्ता के जलए सार्जभौजमक प्रेम के अपने संदेश से लोगों की कई पीजढ़यों के िीर्न को प्रभाजर्त करना था। हािी र्ाररस अली शाह 19र्ीं शताब्दी की पहली जतमाही में हुसैनी सय्यदों के एक पररर्ार में िन्में थे। उनके बचपन में ही जपता सय्यद कु बाजन अली शाह का देहान्त हो गया था। जहंदु समुदाय ने उन्ें उच्च सम्मान में रखा तथा उन्ें एक आदशज सूफी और र्ेदांत का अनुयायी मानते थे। हािी साहब का 7 अप्रैल, 1905 को स्वगजर्ास हो गया। उनको उसी स्थान पर दफनाया गया िहां उनका स्वगजर्ास हुआ था, और उस िगह पर उनके कु छ समजपजत अनुयाजययों ने जिसमें दोनोंजहंदू और मुसलमान भिों ने उनकी स्मृजत में एक भव्य स्मारक स्थाजपत जकया। हर साल ‘सफर’ (चन्द्र आधाररत) महीने में पजर्त्र कि पर उसज आयोजित होता है। हािी र्ाररस अली शाह काजतजक के महीने (अक्टू बर-नर्ंबर) में अपने जपता के ‘उसज’ का आयोिन करते थे, जिसे आि भी संतों के स्मरण के उपलक्ष्य में‘देर्ा मेला’ के नाम से एक बडा मेला आयोजित जकया िाता है।

देवकाली इस मंजदर का जर्र्रण रामायण महाकाव्य के जर्जर्ध प्रसंगों में पाया िाता है| ऐसी मायता है की माता सीता अपने साथ देर्ी जगररिा देर्ी की एक सुन्दर मूजतज लेकर अयोध्या आई थी| महाराि दशरथ ने एक भव्य मंजदर का जनमाजण कराकर उसमे उसी प्रजतमा की स्थापना करायी थी, माता सीता देर्ी की प्रजतजदन पूिा अचजना करती थी| आि भी माता देर्काली की भव्य प्रजतमा यहाूँ स्लस्थत है| िैन श्वेिाम्बर मंतदर अयोध्या नगरी का िैन धमज के जलए भी जर्शेि स्थान है , यहाूँ जर्जभन्न तीथांकरों के िीर्न से सम्बंजधत १८ कल्याणक घजटत हुए हैं| अयोध्या नगरी को पांच तीथजकरो ( आजदनाथ, अजितनाथ, अजभनंद नाथ, सुमजतनाथ एर्ं अनंतनाथ ) की िन्मस्थली होने का गौरर् प्राप्त है| उनकी स्मृजत में फै िाबाद के नर्ाब के कोिाध्यक्ष ने यहाूँ पांच मंजदरों का जनमाजण कराया था| जदगंबर िैन मजिर प्रथम तीथांकर ऋिभदेर् को समजपजत है जिन्ें आजदनाथ, पुरदेर्, र्ृिभदेर् एर्ं आजदिह्म इत्याजद नामो से भी िाना िाता है| आधुजनक समय में यह बडी मूजतज के नाम से प्रजसद्ध है िहाूँ जक अयोध्या के रायगंि नामक स्थान पर ऋिभदेर् की 31 फीट ऊूँ ची प्रजतमा स्थाजपत है | जदगम्बर िैन सम्प्रदाय के पहले तीथांकर ऋिभ देर् िो आजदनाथ के रूप में भी िाने िाते है, की मूजतज मंजदर के गभजग्रह में स्थाजपत है। आचायज रत्न देशभूिणिी महाराि और आजयजका ज्ञानमती मातािी द्वारा र्तजमान समय में इस स्थान का पुनः उद्धार जकया गया है | गुलाब बाड़ी नर्ाब शुिा उद दौला का मकबरा गुलाब बाडी जिसका शास्लब्दक अथज है ‘गुलाबों का बाग़’ फै िाबाद में स्लस्थत है| यहाूँ जर्जभन्न प्रिाजतयों के गुलाब फौर्ारे के चारों तरफ लगाये गये हैं| अर्ध के तीसरे नर्ाब शुिा-उद-दौला की कि भी इसके प्रांगन में स्लस्थत है| यह स्मारक चारबाग़ शैली में बनाया गया है जिसके कें द्र में मकबरा एर्ं चारो तरफ फौर्ारे एर्ं पानी की नहरें है| गुलाब बाडी मात्र ऐजतहाजसक स्मारक ही नहीं अजपतु इसका सांस्कृ जतक एर्ं धाजमजक महत्व भी है| आसपास के लोग इसे पजर्त्र स्थान मानते हैं| मायता है की यहाूँ से एक सुरंग लखनऊ के पोखर को िाती थी जिसका उपयोग नर्ाब द्वारा छु पने के जलए जकया िाता था| कनक भवन राम िन्म भूजम के उिरपूर्ज में स्लस्थत यह मंजदर अपनी कलाकृ जत के जलए प्रजसद्ध है| ऐसी मायता है की माता कै के यी ने प्रभु श्री राम और देर्ी सीता को यह भर्न उपहार स्वरुप जदया था तथा यह उनका व्यस्लिगत महल था| पहले रािा जर्क्माजदत्य एर्ं बाद में भानु कुं र्ारी ने इसका िीणोधार कराया था| मुख्य गभजगृह में श्री राम और माता सीता की प्रजतमा स्थाजपत है | तबरला मंतदर सुलिानपुर इतिहास ऐजतहाजसक दृजि से िनपद सुलतानपुर का अतीत अत्यंत गौरर्शाली और मजहमामंजडत रहा है । पुरातास्लत्वक, ऐजतहाजसक, सांस्कृ जतक, भौगोजलक तथा औध्योजगक दृजि से सुलतानपुर का अपना जर्जशि स्थान है । महजिज र्ाल्मीजक,दुर्ाजसा र्जशष्ठ आजद ऋजि मुजनयों की तपोस्थली का गौरर् इसी जिले को प्राप्त है ।पररर्तजन के शाश्वत जनयम के अनेक झंझार्ातों के बार्िूद इसका अस्लस्तत्व अक्षुण्य् रहा है । सन १९०३ में प्रकाजशत सुलतानपुर जिला गिेजटएर ने इजतहास और जिले की उत्पजि पर कु छ प्रकाश डाला है। यह देखा गया है जक अतीत मे जर्जभन्न कु लों के रािपूत पररर्ारों का स्वाजमत्व अजधकांश भूजम पर था|इनके पास कु ल भूजम क्षेत्र का 76.16 प्रजतशत था। उनमें से रािाओं का जिले के एक चौथाई जहस्से पर अधीकार था साथ-साथ

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