Content text 11. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार.pdf
व्यवसाय अध्ययन अध्याय-11: अ ं तर्ााष्ट्र ीय व्यापार्
(1) 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यरपरर् अंतर्ााष्ट्र ीय व्यापार् का अर्ा एक ही देश के विभिन्न क्षेत्रों, स्थानों या प्रदेशों के बीच होनेिाला व्यापार "घरेलू" "आंतररक व्यापार" कहलाता िै। इसके विपरीत, दो या अभिक देशो के बीच होनेिाला व्यापार "अतं राष्ट्ा रीय व्यापार" या विदेशी व्यापार कहलाता है। अंतर्ााष्ट्र ीय व्यापार् का महत्व/लाभ अंतर्ााष्ट्रीय व्यापार् के लाभ इस प्रकार् है 1. श्रम ववभाजन तर्ा ववशिष्ट्ीकर्ण के लाभ:- अतं रााष्ट्रीय स्तर पर िौगोललक श्रम वििाजन के कारण कु ल विश्व उत्पादन अभिकतम ककया जा सकता है, क्योंकक प्रत्येक देश उन्ही िस्तुओ ं का उत्पादन करता है, लजसमेउसेअभिकतम योग्यता एिं कु शलता प्राप्त होती है। इसके फलस्वरूप उत्पादन की अनुकू लतम दशाएं प्राप्त हो जाती हैऔर उत्पादन अभिकतम होता है। 2. साधनों का पूणाउपयोग:- अंतरााष्ट्रीय व्यापार मेएक देश मेससफा उन्ही उद्योग-िंिो की स्थापना की जाती है, लजनके ललए जरूरी सािन देश मेउपलब्ध होतेहै। इससेदेश मेउपलब्ध सािनों का पूणाउपयोग होनेलगता हैएिं राष्ट्रीय आय मेिृलि होती है। 3. उत्पादन कु िलता मेवृशि:- अंतरााष्ट्रीय व्यापार मेप्रततस्पिााका क्षेत्र स्पष्ट् सेबढ़कर संपूणा विश्व हो जाता है। विश्वव्यापी प्रततयोभगता मेससफा िेही उद्योग जीवित रहतेहैलजनके उत्पादन की ककस्म उच्च तथा कीमत कम होती है। अतः हर देश अपनेउद्योग-िंिो को जीवित रखनेतथा उनका विस्तार करनेहेतुकु शलतम उत्पादन को अपनाता है। इससेदेश की उत्पादन तकनीक मेसुिार होता है। 4. संकटकाल मेसहायता:- अतं रााष्ट्रीय व्यापार के कारण कोई िी देश आर्थथक संकट का आसानी सेसामना कर सकता है। उदाहरण के ललए, यकद ककसी देश मेअकाल की स्थस्थतत उत्पन्न हो जाती हैतो िह देश, विदेशों सेखाद्यान्न आयात करके अकाल का सामना कर सकता है। 5. र्ोगजार् तर्ा आय मेवृशि:- अतं रााष्ट्रीय व्यापार मेिस्तुओ ंका उत्पादन ससफा घरेलूमांग को पूरा करनेके ललए ही नही ं होता हैिरन्विदेशों मेबेचनेहेतुिी िस्तुओ ंका उत्पादन ककया जाता
(2) 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यरपरर् है। इससेराष्ट्रीय उत्पादन मेिृलि के कारण लोगो की आय बढ़ जाती है। ज्यादा उत्पादन के ललए ज्यादा मजदूरों की जरूरत होती हैफलस्वरूप रोजगार स्तर मेिी िृलि हो जाती है। 6. एकाधधकार्ों पर् र्ोक:- विदेशी व्यापार के कारण देश मेएकाभिकारी व्यिसाय पनप नही सकते, क्योंकक उन्हेसदैि विदेशी प्रततयोभगता का खतरा बना रहता है। इसी प्रकार, विदेशी व्यापार के फलस्वरूप एकाभिकार की प्रिृलि को ठेस पहंचती है। 7. उपभोक्ताओ ंको लाभ:- अंतरााष्ट्रीय व्यापार सेउपिोक्ताओ ंको चार लाि प्राप्त है। प्रथम, उन्हे उपिोग के ललए अच्छी तथा सस्ती िस्तुएं भमलती है। द्वितीय, चयन का क्षेत्र बढ़ जाने से सािािौभमकता मेिृलि होती हैअथाात्िेअपनी मनचाही िस्तुओ ंका उपयोग कर सकतेहै। 8. मूल्यों मेसमता:- अंतरााष्ट्रीय व्यापार के कारण सिी राष्ट्रो मेिस्तुओ ंके मूल्यों मेसमानता होने की प्रिृलि पाई जाती है। इसका कारण यह हैकक कम मूल्य िालेदेश सेज्यादा मूल्य िालेदेश मे िस्तुओ ंका तनयाात होनेलगेगा लजससेप्रथम प्रकार के देशो मेमूल्यों मेिृलि और द्वितीय प्रकार के देशों मेमूल्यों मेकमी होनेलगेगी। अंततः सिी देशों मेमूल्य एक समान हो जाएंगे। 9. औद्योगीकर्ण:- अतं राष्ट्ा रीय व्यापार देश के औद्योभगक विकास मेिी सहायक होता है। उद्योगों के विकास हेतुजो सािन देश मेउपलब्ध नही है, उनका विदेशों सेआयात ककया जा सकता है। उदाहरण के ललए इंग्लैंड अपनेउद्योगों के ललए कच्चा माल विदेशों सेआयात करता है। इसी तरह िारत मेउत्पादन तकनीक का आयात करके औद्योभगक विकास ककया गया है। अंतर्ााष्ट्र ीय व्यापार् की प्रमुख हाननयां अंतर्ााष्ट्रीय व्यापार् की प्रमुख हाननयां इस प्रकार् है 1. ववदेिों पर् ननभार्ता:- विदेशी व्यापार के कारण एक देश की अथाव्यिस्था दूसरेदेश पर कु छ िस्तुओ ंके ललए तनिार हो जाती है। परन्तुयह तनिारता सदैि ही अच्छी नही होती, विशेषकर युि के समय तो इस प्रकार की तनिारता अत्यन्त हातनकारक ससि हो सकती है। 2. कच्चेमाल की समाप्ति
(3) 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यरपरर् :- विदेशी व्यापार िारा देश के ऐसेबहत सेसािन समाप्त हो जातेहै, लजनका प्रततस्थापन संिि नही होता है। अनेक कोयला, पेटरोल तथा अन्य खतनज पदाथाइसी प्रकार समाप्त होतेजा रहेहै। यकद उन िस्तुओ ंका उपयोग देश के िीतर ही औद्योभगक िस्तुओ ंको तैयार करनेमेककया जाए तो एक ओर तो इनके उपयोग मेबचत की जा सकती हैऔर इनका अभिक लािपूणाउपयोग हो सकता है। 3. ववदेिी प्रवतयोधगता सेहानन:- विदेशी व्यापार के कारण औद्योभगक इकाइयों को विदेशी उद्योगों सेप्रततयोभगता करनी पड़ती है, ककन्तुविशेष रूप सेअल्पविकससत देश इनके सामनेटटक नही ं सकतेहैऔर उनका ह्रास होनेलगता है। 19 िी ं सदी मेविदेशी प्रततयोभगता के कारण िारतीय लगुऔर कु टरी उद्योगों को िारी आघात लगा। 4. अंतर्ााष्ट्रीय द्वेष:- विदेशी व्यापार नेप्रारंि मेतो अतं रााष्ट्रीय सद्भािना और सहयोग को बढ़ाया, ककन्तुितामान समय मेयह अंतरााष्ट्रीय िेष और युि का आिार बना हआ है। इसी नेउपतनिेशिाद को जन्म कदया और अनेक राष्ट्रो को दास बनाया। 5. देि का एकांगी ववकास:- अतं रााष्ट्रीय व्यापार मेप्रत्येक देश के िल उन्ही िस्तुओ ंका उत्पादन करता है, लजनमेंउसेतुलनात्मक लाि प्राप्त होता है। इस प्रकार, देश मेसिी उद्योग-िन्धों का विकास न होकर, केिल कु छ ही उद्योग िन्धों का विकास संिि होता है। इस प्रकार के एकांगी विकास सेदेश के कई सािन बेकार ही पड़ेरहतेहै। 7. हाननकार्क वस्तुओ ंकेउपभोग की आदत:- विदेशी व्यापार के कारण एक देश मेऐसी िस्तुओ ं का आयात ककया जा सकता हैजो हातनकारक होती है। चीन मेअफीम के आयात के फलस्वरूप िहां के लोग अफीमची हो गए। 8. कृ वष प्रधान देिों को हानन:- अतं रााष्ट्रीय व्यापार के कारण कृ द्वष प्रिान देशों को औद्योभगक देशों की तुलना मेहातन उठानी पड़ती है। इसका कारण यह हैकक कृ द्वष प्रिान देश उन िस्तुओ ंका तनयाात करता हैलजनका उत्पादन घटती हई लागत के तनयम के अंतगात होता है। अंतर्र्ाष्ट्र ीय व्यापार् - प्रकृ वत और् स्कोप अंतर्ााष्ट्रीय व्यापार् मेंिाममल हैं:
(4) 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यरपरर् • माल का तनयाात और आयात। • सेिाओ ंया बौलिक संपदा अभिकारों का तनयाात और आयात। • लाइसेंससिंग और फ्रें चाइल िंग। • प्रत्यक्ष तनिेश और पोटाफोललयो तनिेश दोनों सटहत विदेशी तनिेश।