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Content text 8. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार.pdf

भूगोल अध्याय-8: अ ं तर्ाष्ट्ा र ीय व्यापार्
(1) 08 अंतर्राष्ट्रीय व्यरपरर् अंतर्ााष्ट्र ीय व्यापार् का इततहास :- 1. प्राचीन समय में, स्थानीय बाजारों मेंव्यापार प्रतिबंधिि था। िीरे– िीरेलंबी दूरी का व्यापार विकससि हुआ, जजनमेंसेससल्क रूट एक उदाहरण है। यह मार्ग6000 ककलोमीटर लंबा था जो रोम को चीन सेजोड़िा था और व्यापाररयों नेइस मार्गसेचीनी रेशम, रोमन ऊन, िािुओ ं आकद का पररिहन ककया। बाद में, समुद्री और महासार्रीय मार्ों की खोज हुई और व्यापार मेंिृजि हुई। 2. 15 िी ं शिाब्दी मेंदास व्यापार का उदय हुआ, जजसमेंपुिगर्ाली, डच, स्पेन और तिटटश ने अफ्रीकी मूल तनिाससयों को पकड़ जलया और अमेररका मेंबार्ान माजलकों को बेच कदया। औद्योधर्क क्ांति के बाद, औद्योधर्क देशों नेकच्चेमाल का आयाि ककया और र्ैर औद्योधर्क देशों को िैयार उत्पादों का तनयागि ककया। 3. अंिरागष्ट्रीय व्यापार उत्पादन और श्रम विभाजन मेंविशेषज्ञिा का पररणाम है। यह िुलनात्मक लाभ के ससिांि पर आिाररि हैजो व्यापाररक भार्ीदारों के जलए पारस्पररक रूप सेफायदेमंद है। 4. रेशम मार्गके जररयेचीन की रेशम एिं रोम की ऊन का भारि एिं मध्य ऐजशया के जररये व्यापार होिा था। 5. अफ्रीका सेदासों का व्यापार अमेररका मेंहोिा था। 6. औद्योधर्क क्ान्ति के समय वितनर्ममि िस्तुओ ंका व्यापार। 7. आिुतनक युर् मेंW.T.O. का र्ठन। 8. आिुतनक युर् मेंपत्तनों की महत्वपूणगभूधमका। अंतर्र्ाष्ट्र ीय व्यापार् का आधार् :- अंतर्र्ाष्ट्रीय व्यापार् का आधार् जिन कार्कों पर् अंतर्ााष्ट्रीय व्यापार् ननभार् कर्ता हैवेइस प्रकार् हैं:- 1. राष्ट्रीय संसािनों मेंअंिर संसािन दतुनया मेंअसमान रूप सेवििररि ककए जािेहैं। येअंिर मुख्य रूप सेभूविज्ञान, खतनज संसािनों और जलिायुको संदर्मभि करिेहैं।

(3) 08 अंतर्राष्ट्रीय व्यरपरर् • षिपार्श्विक व्यापार – दो देशों िारा एक दूसरेके साथ ककया जानेिाला व्यापार षिपार्श्विक व्यापार कहलािा है। • बहुपार्श्विक व्यापार – बहुि सेव्यापाररक देशो के साथ ककया जानेिाला व्यापार बहुपार्श्विक व्यापार कहलािा है अंतर्ााष्ट्र ीय व्यापार् के तीन बहुत महत्वपूर्ापक्ष :- • व्यापार का पररमाण • व्यापार संयोजन • व्यापार की कदशा व्यापार् का परर्मार् :- व्यापार की र्ई िस्तुओ ंका िास्तविक िौल पररमाण कहलािा है। सभी प्रकार की व्यापाररक सेिाओ ं को िौला नही ंजा सकिा इसीजलए व्यापार की र्ई िस्तुओ ंि सेिाओ ंके कु ल मूल्य को व्यापार का पररमाण के रूप मेंजाना जािा है। व्यापार् संयोिन :- व्यापार संयोजन सेअधभप्राय देशों िारा आयातिि ि तनयागतिि िस्तुओ ंि सेिाओ ंके प्रकार मेंहुए पररििगन सेहैं। जैसेषपछली शिाब्दी के शुरू मेंप्राथधमक उत्पादों का व्यापार प्रिान था। बाद में तनमागण क्षेत्र की िस्तुओ ंका आधिपत्य हो र्या। अब सेिा क्षेत्र भी िेजी सेबढ रहा है। व्यापार् की दिशा :- पहलेविकासशील देश कीमिी िस्तुओ ंिथा जशल्पकला की िस्तुओ ंआकद का तनयागि करिेथे। 19िी ंशिाब्दी मेंयूरोपीय देशों नेवितनमागण िस्तुओ ंको अपनेउपतनिेशों सेखाद्य पदाथगि कच्चे माल के बदलेतनयागि करना शुरू कर कदया। ििगमान मेंभारि नेविकससि देशों के साथ प्रतिस्पिाग शुरु कर दी है। आज चीन िेजी सेव्यापार के क्षेत्र मेंआर्ेबढ रहा है। व्यापार् संतुलन :-

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