Content text गोरखपुर मंडल.pdf
में गंज शब्द से जुड़ गर्ा। तजसका अतभलेखीर् प्रमार् भी उपलब्ध है। ज्ञािव्य हो तक शोडास के मथुरा पाषार् लेख में गंजवर नामक पदातधकारी का स्पष्ट रूप से उल्लेख तकर्ा गर्ा है। छठी शिाब्दी ई0 में पूवग में अन्य गर्िंत्रों की भांति कोतलर् गर्िंत्र भी एक सुतनतिि भोगौतलक इकाई के रूप में स्तिि था। र्हां का शासन कतिपर् कु लीन नागररकों के तनर्गर्ानुसार संचातलि होिा था। ित्कालीन गर्िंत्रों की शासन प्रर्ाली एवं प्रतक्र्ा से स्पष्टि: प्रमातर्ि होिा है तक जनिंत्र बुद्ध अत्यन्त लोकतप्रर् थे। इसका प्रमार् बौद्ध ग्रंथों में वतर्गि शक्ो एवं कोतलर्ों के बीच रोतहर्ी नदी के जल के बटवारें को लेकर उत्पन्न तववाद को सुलझाने में महात्मा बुद्ध की सतक्र् एवं प्रभावी भूतमका में दशगनीर् है। इस घटना से र्ह भी प्रमातर्ि हो जािा है तक इस क्षेत्र के तनवासी अति प्राचीन काल से ही कृ तष कमग के प्रति जागरूक थे। कु शीनगर के बुद्ध के पररतनवागर् के उपरांि उनके पतवत्र अवशेष का एक भाग प्राप्त करने के उद्देश्य से जनपद के कोतलर्ों का दू ि भी कु शीनगर पहुंचा था। कोतलर्ों ने भगवान बुद्ध क पतवत्र अवशेषों के ऊपर रामग्राम में एक िूप तनतमगि तकर्ा था, तजसका उल्लेख िातहर्ान एवं हवेनसांग ने अपने तववरर्ों में तकर्ा है। तनरार्वली-सूत्र नामक ग्रंथ से ज्ञाि होिा है तक जब कोशल नरेश अजािशत्रु ने वैशाली के तलतचछतवर्ों पर आक्मर् तकर्ा था, उस समर् तलतचछतव गर्प्रमुख चेटक ने अजािशत्रु के तवरूद्व र्ुद्ध करने के तलए अट्ठारह गर्राज्यों का आहवान तकर्ा था। इस संघ में कोतलर् गर्राज्य भी सस्तितलि था। छठी षिाब्दी ई. पूवग के उपरांि राजनीतिक एकीकरर् की जो प्रतक्र्ा प्रारम्भ हुई उसकी चरम पररर्ति अशोक द्वारा कतलंग र्ुद्ध के अनंिर शास्त्र का सदा के तलए तिलांजतल द्वारा हुआ। महराजगंज जनपद का र्ह संपूर्ग क्षेत्र नंदों एवं मौर्ग सम्राटों के अधीन रहा। िातहर्ान एं व हवेनसांग ने सम्राट अशोक के रामग्राम आने एवं उसके द्वारा रामग्राम िूप की धािुओं को तनकालने के प्रर्ास का उल्लेख तकर्ा है। अश्वघोष के द्वारा तलस्तखि बुद्ध चररि (28/66) में वतर्गि है तक समीप के कु ण्ड में तनवास करने वाले एवं िूप की रक्षा करने की नाग की प्राथगना से द्रतवि होकर उसने अपने संकल्प की पररत्याग कर तदर्ा था। गुप्तों के अभ्युदर् के पूवग मगध की सत्ता के पिन के बीच का काल जनपद के ऐतिहातसक घटनाओं के तवषर् में अंध-र्ुग की भांति है। ऐसा प्रिीि होिा है तक कु षार्ों ने इस क्षेत्र पर शासन िातपि करने में सिलिा प्राप्त की थी। कु षार्ों के उपरांि र्ह क्षेत्र गुप्तों की अधीनिा में चला गर्ा। चौथी शिाब्दी ई. के प्रारम्भ में जनपद का अतधकांश क्षेत्र चन्द्रगुप्त प्रथम के राज्य में सतममतलि था, तजसने तलच्छतव राजकु मारी कु मारदेवी के साथ वैवातहक संबंध िातपि करके अपनी शस्तक्त एवं सीमा का अभूिपूवग तविार तकर्ा। चन्द्रगुप्त तद्विीर् तवक्मातदत्य के शासन काल में इस जनपद का क्षेत्र श्राविी मुस्तक्त में सस्तितलि था। चीनी र्ात्री िातहर्ान (400-411 ई.) अपनी िीथग र्ात्राओं के क्म में कतपलविु एवं रामग्राम भी आर्ा था। उसने आस-पास के वनों एवं खण्डहरों का उल्लेख तकर्ा है। गुप्त काल के उपरांि र्ह क्षेत्र मौखररर्ों एवं हषग के आतधपत्य में रहा। हषग के शासना काल मे हवेनसांग (630- ६४४ ई.) ने भी तवप्पतलवन और रामग्राम की र्ात्राएं संपन्न की थी। हषग के उपरांि इस जनपद के कु छ भाग पर भरों का अतधकार हो गर्ा। गोरखपुर के धुररर्ापुर नामक िान से प्राप्त कहल अतभलेख से ज्ञाि होिा है तक 9 वीं शिाब्दी ई. में महराजगंज जनपद का दतक्षर्ी भाग गुजगर प्रतिहार नरेशॉ के श्राविी मुस्तक्त में सस्तितलि था, जहां उनके सामान्त कलचुररर्ों की सत्ता िातपि की। जनश्रुतिर्ों के अनुसार अपने अिुल एश्वर्ाग का अकू ि धन-सम्पदा के तलए तवख्याि थारू राजा मानसेन र्ा मदन तसंह 900-950 गोरखपुर और उसके आस-पास के क्षेत्रों पर शासन करिा था। संभव है तक उसका राज्य महराजगंज जनपद की दतक्षर्ी सीमाओं को भी आवेतष्ठि तकर्े रहा है। गुजगर प्रतिहारों के पिन के उपरांि तत्रपुरी के कलचुरर-वंश के शासक लक्ष्मर् कर्ग (1041-10720) ने इस जनपद के अतधकांश भूभाग को अपने अधीन कर तलर्ा था। तकं िु ऐसा प्रिीि होिा है तक उसका पुत्र एवं उत्तरातधकारी र्श्कर्ग 1073-1120 इस क्षेत्र पर अतधकार जमा तलर्ा। अतभलेस्तखक स्रोिों से ज्ञाि होिा है तक गोतवन्द चन्द्र गाहड़वाल 1114-1154 ई. का राज्य तवकार िक प्रसाररि था। उसके राज्य में महराजगंज जनपद का भी अतधकांश भाग तनतििि: सस्तितलि रहा होगा। गोरखपुर जनपद के मगतदहा (गगहा) एवं धुररर्ापार से प्राप्त गोतवन्द चन्द्र के दो अतभलेख उपर्ुगक्त िथ्य की पुतष्ट है। गोतवन्दचन्द के पौत्र जर्चन्द्र (1170-1194 ई.) की 1194 में मुहिद गोरी द्वारा पराजर् के साथ ही इस क्षेत्र से गाहड़वाल सत्ता का लोप हो गर्ा और िानीर् शस्तक्तर्ों ने शासन-सूत्र अपने हाथों में ले तलर्ा। 12 वीं शिाब्दी ई. के अंतिम चरर् में जब मुहिद गौरी एवं उसके उत्तरातधकारी कु िुबुददीन ऐबक उत्तरी भारि में अपनी नविातपि सत्ता को सुदृढ़ करने में लगे हुए थे इस क्षेत्र पर िानीर् राजपूि वंशों का राज्य िातपि था। चन्द्रसेन श्रीनेि के ज्येष्ठ पुत्र ने सिासी के राजा के रूप में एक बड़े भूभाग पर अतधकार जमार्ा, तजसमें महराजगंज जनपद का भी कु छ भाग सस्तितलि रहा होगा। इसके उपरांि तिरोज शाह िुगलक के समर्
अवतशष्ट जमीदारी की सुरक्षा हेिु बत्तीस हजार रूपर्े सालाना पर समझौिा तकर्ा था। बाद में अंग्रेजों ने उसे बकार्ा धनराशी न दे पाने के कारर् बन्दी बना तदर्ा। 1805 ई. में गोरखों बुटवल पर अतधकार कर तलर्ा और अंग्रेजों की कै द से छू टने के उपरांि बुटवल नरेश काठमाण्डू में हत्या कर दी। 1806 ई. िक इस क्षेत्र अतधकांश भू-भाग गोरखों के कब्जे में जा चुका था। र्हां िक तक 1810-11 ई. में उन्ोंने गोरखपुर में प्रवेश करिे हुए पाली के पास स्तिि गांवों को अतधकृ ि कर तलर्ा। गोरखों से इस सम्पूर्ग क्षेत्र को मुक्त कराने के तलए मेजर जे.एस.वुड के नेिृत्व में अंग्रेज सेना ने बुटवल पर आक्मर् तकर्ा। वुड संभवि: तनचलौल होिे हुए 3 जनवरी 1815 को बुटवल पहुंचा। बुटवल ने वजीर तसंह के नेिृत्व में गोरखों ने र्ुद्ध की िैर्ारी कर ली थी, तकन्तु अंग्रेजी सेना के पहुंचाने पर गोरखे पहाड़ों में पलातर्ि हो गर्े। वुड उन्ें पराि करने में सिल नहीं हो सका। इसी बीच गोरखों ने तिलपुर पर आक्मर् कर तदर्ा और वुड को उनका सामना करने के तलए तिलपुर लौटना पड़ा। उसकी ढुलमुल नीति के कारर् गोरखे इस संपूर्ग क्षेत्र में धावा मारिे रहे और नागररकों का जीवन कण्टमर् बनािे रहे। र्हां िक तक वुड ने 17 अप्रैल 1815 को बुटवल पर कई घंटे िक गोलाबारी की तकन्तु उसका अपेतक्षि पररर्ाम नहीं तनकला। ित्पिाि कनगल तनकोलस के नेिृत्व में गोरखों से िराई क्षेत्र को मुक्त कराने का तद्विीर् अतभर्ान छे ड़ा गर्ा। कनगल तनकोलस ने गोरखों के ऊपर जो दबाव बनार्ा, उससे 28 नवम्बर 1815 को अंग्रेजों एवं गोरखों के बीच प्रतसद्ध सगौली की संतध हुई तकन्तु बाद में गोरखे संतध की शिों को स्वीकार करने में आनाकानी करने लगे। िलि: आक्टर लोनी के द्वारा तनर्ागर्क रूप से परातजि तकर्े जाने के बाद 4 माचग 1816 को नेपाल-नरेश इस संतध को मान्यिा प्रदान कर दी। इस संतध के िलस्वरूप नेपाल ने िराई क्षेत्र पर अपना अतधकार छोड़ तदर्ा और र्ह क्षेत्र कं पनी के शासन के अन्तगगि सस्तितलि कर तलर्ा गर्ा। 1857 के प्रथम स्विंत्रिा संग्राम ने इस क्षेत्र में नवीन प्रार्-शस्तक्त का संचार तकर्ा। जुलाई 1857 में इस क्षेत्र के जमींदारों के तब्रतटश राज्य के अंि की घोषर्ा की। तनचलौल के राजा रण्डुलसेन ने अंग्रेजों के तवरूद्व आंदोलनकाररर्ों का नेिृत्व तकर्ा। 26 जुलाई को सगौली में तवद्रोह होने पर वतनर्ाडग (गोरखपुर के ित्कालीन जज) के कनगल राउटन को वहां शीघ्र पहुंचने के तलए पत्र तलखा, जो काठमाण्डु से तनचलौल होिे हुए िीन हजार गोरखा सैतनकों के साथ गोरखपुर की ओर बढ़ रहा था, गोरखों के प्रर्ास के बावजूद वतनर्ाडग आंदोलन को पूरी िरह दबाने में असमथग रहा। िलि: उसने गोरखपुर जनपद का प्रशासन सिासी और गोपालपुर के राजा को सौंप तदर्ा। तकन्तु अन्दोलानकिाग बहुि तदन िक इस क्षेत्र को मुक्त नहीं रख सके और अंग्रेजों ने पुन: इस क्षेत्र को अपने पूर्ग तनर्ंत्रर् में ले तलर्ा। तनचलौल के राजा रण्डुलसेन को आंदोलनकाररर्ों का नेिृत्व करने के कारर् न के वल उसको पूवग प्रदत्त राजा की उपातध से वंतचि कर तदर्ा गर्ा अतपिु 1845 ई. में उसे दी गई पेंशन भी छीन ली गई। 1857 ई. के प्रथम स्विंत्रिा आन्दोलन के उपरांि नवम्बर 1858 ई. में रानी तवक्टोररर्ा के घोषर्ा पत्र द्वारा र्ह क्षेत्र भी सीधे तब्रतटश सत्ता के अधीन हो गर्ा। तब्रतटश शासन काल में भी सामान्य जनिा की कतठनाइर्ां दू र नहीं हो सकी। भूतम संबंधी तवतभन्न बन्दोबिों के बावजूद कृ षकों को उनकी भूतम पर कोई अतधकार नहीं तमल सका, जबतक जमीदार मजदू रों एवं कृ षकों के श्रम के शोषर् से संपन्न होिे रहे। तकसान एवं जमीदार के बीच का अंिराल बढ़िा गर्ा। 1920 ई. में गांधी जी के द्वारा असहर्ोग आंदोलन प्रारम्भ तकर्ा तजसका प्रभाव इस क्षेत्र पर भी पड़ा। 8 िरवरी 1921 को गांधी जी गोरखपुर आर्े तजससे र्हां के लोगों में तब्रतटश राज के तवरूद्व संघषग छे ड़ने के तलए उत्साह का संचार हुआ। शराब की दू कानों पर धरना तदर्ा गर्ा िाड़ के वृक्षों को काट डाला गर्ा। तवदेशी कपड़ों का बतहष्कार हुआ और उसकी होली जलार्ी गर्ी। खादी के कपड़े का प्रचार-प्रसार हुआ। 2 अक्टू बर 1922 को इस संपूर्ग क्षेत्र में गांधी जी का जन्म तदन अंन्यि: उत्साह के साथ मनार्ा गर्ा। 1923 ई. में पं. जवाहर लाल नेहरू ने इस क्षेत्र का दौरा तकर्ा, तजसके िलस्वरूप कांग्रेस कमेतटर्ों की िापना हुई। अक्टू बर 1929 में पुन: गांधी जी ने इस क्षेत्र का व्यापक दौरा तकर्ा। 4 अक्टू बर 1929 को घुघली रेलवे स्टेषन पर दस हजार देशभक्तों उनका भव्य स्वागि तकर्ा। 5 अक्टू बर 1929 को गांधी जी ने महराजगंज में एक तवशप जनसभा को संबोतधि तकर्ा। महात्मा गांधी की इस र्ात्रा ने इस क्षेत्र के देशभक्तों में नवीन स्फू तिग का संचार तकर्ा, तजसका प्रभाव 1930-34 िक के सतवनर् अवज्ञा आंदोलनों में देखने को तमला। 1930 ई. के नमक सत्याग्रह के समर् भी इस क्षेत्र ने महत्वपूर्ग भूतमका तनभाई। नमक कानून के तवरूद्व सत्याग्रह, हड़िाल सभा एवं जुलूस का आर्ोजन तकर्ा गर्ा। 1931 ई. में जमीदारों के अत्याचार के तवरूद्व र्हां की जनिा नेतकसान आंदोलन मेंभाग तलर्ा। उसी समर् श्री तशब्बनला सक्सेना नेमहात्मा गांधी के आहवान पर सेण्ट एण्ड ू ज कालेज के प्रवक्ता पद का पररत्याग कर पूवाांचल के तकसान-मजदू रों का नेिृत्व संभाला। 1931 में सक्सेना जी ने