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Content text आजमगढ़ मंडल.pdf

आजमगढ़ इतिहास राज्य के पूर्वी जिलोों में से एक आज़मगढ़ एक बार प्राचीन कोसला साम्राज्य का जिस्सा बनाया, जसर्वाय उत्तर-पूर्वी जिस्से को छोड़कर िो मल्ल साम्राज्य में शाजमल था। बुद्ध के समय उत्तरी भारत के चार शक्तिशाली राितोंत्ोों में कोसला साम्राज्य प्रमुख रूप से सामने आया, तब इसकी समृक्तद्ध अपने चरम पर पहोंच गई थी । कोसाला का राज्य पूर्वव में गोंगा और मगध के राज्य द्वारा, उत्तर -पूर्वव में र्वृिी-जलच्छजर्वयोों के क्षेत् और उत्तर में मल्ल के द्वारा , पजिम में सुरसेना द्वारा जिरा हआ था और दजक्षण और दजक्षण-पजिम में र्वत्स राज्य द्वारा, कौशाम्बी रािधानी के रूप में। आिमगढ़ जिले में बहत पुरातन कोई भी अर्वशेष निीों िै, और िो कु छ ऐसे अक्तित्व में िैं भी उनका उत्पजत्त र्व इजतिास अजधक ज्ञात निीों िैं। 'आिमगढ़' शब्द दो शब्दोों 'आिम' और 'गढ़' से जमलकर बना िै। 'आिम' शब्द शिर के सोंस्थापक रािा (रािा) आिम खान के नाम को दशावता िै और 'गढ़' शब्द का अथव िै जकला या मिल। उनके र्वोंशिोों में से एक जर्वक्रमिीत ने इस्लाम धमव अपना जलया और उनके दो बेटे हए जिनका नाम आिम खान और अिमत खान था। आिम खान ने अपने नाम पर आिमगढ़ की नीोंर्व रखी। आिमगढ़ तमसा नदी (टोोंस) के तट पर क्तस्थत िै। आिमगढ़ की स्थापना मुगल काल के दौरान 1665 में हई थी। 18 जदसोंबर, 1832 को यि जिला बना और सर थॉमसन को नए बने जिले आिमगढ़ का पिला कलेक्टर जनयुि जकया गया। अोंग्रेिोों के दो बेस कैं प थे; पिला दीर्वानी कोटव और दू सरा र्वेस्ले स्कू ल। 1832 में जसधारी के बाबू के पैतृक िर और अिबल की िगि पर जसजर्वल कोटव का जनमावण जकया गया। शुरुआत में जसजर्वल कोटव र्वाराणसी के जिला िि के जनयोंत्ण और देखरेख में न्याय करते थे। 1856-57 में आिमगढ़ में जिला िि की जनयुक्ति की गई। 15 नर्वोंबर, 1994 को आिमगढ़ कजमश्नरी बना। इसमें आिमगढ़, मऊ और बजलया जिले शाजमल िैं। रुति के स्थान मुबारकपुर (िहसील-सदर, ब्लॉक- सतियाव ) माना िाता िै जक इसका मूल नाम कसीमाबाद रिा िै, और सूफी रािा मुबारक के नाम पर, इसे पुनस्थावजपत जकया गया िै। यि स्थान बनारसी साजड़योों के जनमावण के जलए प्रजसद्ध िै, िो जक दुजनया में भी बहत लोकजप्रय और जनयावत जकए िाते िैं। स्थानीय लोगोों के अनुसार, चैदिर्वीों शताब्दी की शुरूआत से मुबारकपुर अपनी शानदार रेशम बुनाई के साथ-साथ अपने प्रभार्वशाली िरी कड़ाई के रूपाोंकनोों के जलये भी प्रजसद्ध िै। मेहनगर (िहसील-मेहनगर, ब्लॉक- मेहनगर) रािा िररबान और जर्वशाल तालाब द्वारा जनजमवत जकले के स्मारक यिाों प्रजसद्ध िैं। िर साल मजिलिा नामक तालाब पर एक धाजमवक मेला आयोजित जकया िा रिा िै िो जक तिसील मुख्यालय से 3 जकमी पर क्तस्थत िै। दुवाासा यि दुर्वावसा ऋजष के आश्रम के जलए प्रजसद्ध िै। दत्तात्रेय

उन जदनोों इस क्षेत् में मऊ नट का शासन था। कब्जे को लेकर मऊ नट एर्वों मजलक बोंधुओों के बीि भीषण युद्ध हआ,जिसमें मऊ नट का भोंिन(मारा गया) हआ और इस क्षेत् को मऊ नट भोंिन किा गया िो कालान्तर में मऊनाथ भोंिन िो गया। मौयव एर्वों गुप्त र्वोंश के रािाओों का दीप जनर्वावण िोने के पिात् मुगल शासन काल में यि स्थान िौनपुर राज्य अन्तगवत था। इसके पूर्वव 1540-1545 के मध्य इस क्षेत् में तत्कालीन बादशाि शेरशाि सूरी का आगमन दो बार हआ। शेरशाि सूरी दरगाि में रि रिे सूफी सोंत मीराशाि से जमलने आया था। उसकी बेटी मिाबानो मीराशाि के साजनध्य में िी रि रिी थी। मऊ नगर का पुराना पुल िो 1956 की बाढ़ में धाराशािी िो गया, शेरशाि सूरी द्वारा िी बनर्वाया गया था। बताते िैं जक पुल जनमावण में देर िो िाने के कारण िी शेरशाि सूरी द्वारा पेशार्वार से कोलकाता तक बनर्वाया गया ऐजतिाजसक मागव (ग्राण्ट टोंक रोि) इधर से निीों गुिर सका।। सन् 1629 में मुगल बादशाि शािििााँ के शासन काल में यि इलाका उनकी लड़की ििााँआरा को जमला। नगर के र्वतवमान स्वरूप की नीोंर्व ििााँआरा के शासन काल में िी पड़ी। ििााँआरा बेगम ने यिााँ कटरा में अपना आर्वास एर्वों शािी मक्तिद का जनमावण करर्वाया और उसकी सुरक्षा के जलए उसे फौिी छार्वनी में तब्दील कर जदया गया। फौि को रिने के जलये बनाई गयी बैरकोों के अर्वशेष आि भी जर्वद्यमान िै। ििााँआरा ने शािी कटरा क्षेत् में 16 से 17 फीट नीचे भूजमगत सुरोंग भी बनर्वाया था, जिसके अर्वशेष आि भी िमीन के अन्दर खुदाई के दौरान यत्-तत् पाये िाते िैं। गत् र्वषव स्थानीय नगर पाजलका के कटरा क्षेत् के जिन दो स्थानोों पर नलकू प की बोररोंग करायी गयी र्वि 17-18 फीट िाकर फे ल िो गयी। कटरे में शािी कोठररयाों के दजक्षण-पजिम भाग में शािी पररर्वार का आर्वास था। यिााँ इमाम खाना का अर्वशेष जपछले जदनोों तक था। शािी पररर्वार के सािो-सामान खच्चरोों पर लाद कर यिााँ लाये गये थे। इन्ें लाने र्वालोों की पीढ़ी आि भी यिााँ आबाद िै और खच्चरोों से िी ढुलाई का काम करके अपना िीर्वन यापन करती िै। मुगल पररर्वार के साथ मिदू र, कारीगर र्व अन्य प्रजशजक्षत श्रजमक भी आये थे, जिन्ोोंने यिााँ बुनाई कला को िन्म जदया। िथकरिा बुनाई से सम्बद्ध सूत कातने र्वाले लोग यिााँ गोरखपुर से आकर आबाद हए। उनके रिने के जलए दो मुिल्ला कतुआपुरा पूरब र्व कतुआपुरा पजिम बनाया गया। बताते िैं जक भाई औरोंगिेब के नाम पर बेगम ििााँआरा ने एक नया मुिल्ला औरोंगाबाद आबाद जकया तथा मऊनाथ भोंिन का नाम अपने नाम पर ििााँनाबाद कर जदया, लेजकन यि नाम लोकजप्रय न िो सका और मऊनाथ भोंिन उत्तरोत्तर प्रगजत करता रिा।। उल्लेखनीय िै जक ििााँआरा बेगम िब यिााँ नर्व जनमावण करा रिी थी तो उनके साथ मिदू रोों के अजतररि िो लोग यिााँ आये उनमें अजधकाोंश दिकार थे और उनमें मुख्य र्वगव कपड़ा बनाने र्वालोों का था िो यिााँ स्थायी रूप से आबाद िो गये। यिााँ आये अजधकाोंश दिकार ईरानी, अफगानी अथर्वा तुकी मूल के थे। मऊ की स्थानीय भाषा िो अपने ढोंग से जनराली मानी िाती िै, में अजधकाोंश शब्द फारसी, तुकी र्व ईरानी भाषा के पाये िाते ि, िो आि अपना र्वािजर्वक अथव खो चुके िैं। अठ्ठारिर्वीों शताब्दी के आरम्भ में िौनपुर के शासन से पृथक करके इस भू-भाग को आज़मगढ़ के रािा आिमशाि को दे जदया गया। आिमशाि और अिमत शाि दोन सगे भाई थे। आिमशाि ने आज़मगढ़ अिमत शाि ने अिमतगढ़ बसाया।।
सन् 1801 में आज़मगढ़ और मऊनाथ भोंिन ईस्ट इोंजिया कम्पनी को जमले और यि क्षेत् गोरखपुर िनपद में शाजमल कर जलया गया। सन् 1932 में आज़मगढ़ स्वतन्त्र जिला बनाया गया िो स्वाधीनता के बाद 1988 तक कायम रिा। पूर्ववर्वती जिला आिमगढ़ िनपद में सबसे अजधक रािस्व की प्राक्तप्त मऊ से िोती थी, जकन्तु इसके जर्वकास का प्रयास नगण्य श्री कल्पनाथ राय, पूर्वव साोंसद ने मऊ जिले के जनमावण में एक मित्वपूणव भूजमका जनभाई थी | मुन्दिधाम दोहरीघाट मऊ बतलया इतिहास बतलया तवरासि पुण्यतोया भगर्वती गोंगा , तम-अि िाररणी तमसा, र्वाजशष्ठी सरयू, काम को दग्ध करने र्वाले कामेश्वर के कर्वलेश्वरताल, कु शहृदजर्वोंदु के सुरथ- सुरिताल आजद िल स्त्रोतोों की अगाध िलराजश में ओतप्रोत िन्मभूजम के भू-भाग पर िब जलखने के जलये बैठता हाँ, तो लेखनी सेअजधक द्रुत गजत से बुक्तद्ध और भार्वनाएाँ दौड़ने लगती िैं। खोोंग यिी नाम जलखा िै, र्वैजश्वक मानर्व िाजत के इजतिासकार रागेय रािर्व ने अपनी पुिक अोंधेरा रािा में आि जिमालय की उपत्यकाओों से जनकल कर बोंगाल की खाड़ी में मिासागर से जमलने र्वाली िीर्वनदाजयनी गोंगा का। कालान्तर में यि कभी फारस की खाड़ी ( श्रीनार- क्षीरसागर) से आती थी। आचायव चतुरसेन की माने तो इसीजलये िररजप्रया- जर्वष्णु जप्रया किी िाती िै। जर्वमुि- भृगु क्षेत् की बजलयाग भूजम में भर्वानी सरयू-िािवरा को र्वाजशष्ठी उस कृ तज्ञता में किना इस कारण से सर्ववथा उपयुि िै जक मिजषव भृगु जशष्य ददवर अर्वध के कु लगुरु र्वजशष्ठ िी की आज्ञा से िी इस देर्विा को गोंगा से जमलाने लाये थे। जर्वश्व के जर्वद्वतिन जर्वज्ञ िै, मानर्वीय सोंस्कृ जतयाों सदानीरा सुरसरर तटोों पर पनपीों, पुक्तित पल्लजर्वत हई थी । सृजि सृिन की छठर्वीों पीढ़ी का िोमोसैजपयन मानर्व िब िोंगली िीर्वन से थोड़ा ऊपर उठकर समूि में पर्ववत कन्दराओों में रिने लगा था। तब नयी धरती की खोि शुरू हई। खोोंग नदी की िलधारा में बााँस की बनी तरजणयाों तैरने लगी थी।उत्तर में जिमालय पारस्य पर्ववतीय प्रदेशोों के कठोर िीर्वन से खोोंग के मैदानी भू-भाग का िीर्वन सरल-सुखद िै । ऊर प्रदेश के जनषाद- मल्लाि नाजर्वकोों का यिी किना िै। समतल भूजम, सम शीतोष्ण जदर्वस, प्रचुर आखेट और भोिन भी िै। यि खोोंग िी र्विााँ सदानीरा िै। िा िा (सपव) िोंकार ( शेर-बाि) का भय भी कम िै। आजदशक्ति ‘धमरा’ के कु ल से भी युर्वा उतार्वले िो रिे थे, नयी धरती पर िाने के जलये। जब्रजटश इजतिासकार जम0 एफ0 एच0 जफशर 1884 ई0 के शासकीय गिेजटयर में प्राचीन जकों दर्वोंती के िर्वाले जलखते िैं जक जिमालय के उत्तर सुषानगर (ईरान) के प्रिापजत ब्रह्मा िी तक आद्य पत्कार नारद िी यि समाचार पहाँचाते िैं जक दजक्षण में पृथ्वी पर एक ऐसी नदी और ऐसा स्थान िै, ििााँ का िल पीकर कौर्वा िोंस बन गया िै।

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